Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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- शा की ओर बढ़ते कदम का जन्म हुआ था, जिन्होंने अपने पूर्वभव में एक कबूतर की रक्षार्थ अपना नांस दान किया था । उनके चार कल्याणक यहां हुए । उनके जन्म के समय महामारी फैली हुई थी जो पैदा होते शांत हो गई । उनकी माता रानी अचीरा, पिता राजा विश्वसेन थे। प्रभु श्री शांतिनाथ तीर्थकरों में से चक्रव्रती वने, उन्होंने ६ खंडों को विजय किया ।
इसी धरती पर प्रभु कुथुनाथ व प्रभु अरहनाथ के चार कल्याणक हुए, वह भी चक्रव्रती बने, फिर उन्होंने तप कर केवल ज्ञान प्राप्त किया । इस प्रकार यहां तीन तीथंकरों के १२ कल्याणक हुए हैं ।
वहां प्रभु मुनि सुव्रत रवामी का समोसरण आया था । इनका समय लामायण के समक्ष टहरता है । उन्होंने अपना धर्मप्रचार कश्मीर, पंजाव, गंधार तक किया था ।
प्रभु मल्लीनाथ व भगवान पार्श्वनाथ का समोसरण यहां आया था । प्रनु पार्श्वनाथ ने भी कश्मीर, कुरु, पंजाब, गंध गार देशों में विचरण किया था ।
अन्तिम तीर्थकर श्रमण भगवान महावीर यहां जैन धर्म देशना के लिये पधारे तो यहां के राजा ने प्रभु महावीर से संयम अंगीकार किया । यह स्थान प्रभु महावीर की पावन चरणरज से पवित्र है । इस तीधं पर साधु हजारों सालों से जैन साधु, आचार्य व श्री संघ यात्रा के लिए रहे हैं । आचार्य जिनप्रभव सूरि ने विविध तीर्थ कल्प में इस तीर्थ का वर्णन ४०० वर्ष पूर्व किया है । यह तीर्थ गंगा के किनारे स्थित था । आज भी गंगा यहां से ७ कि.मी. दूर वहती है । गंगा ने इस तीर्थ का विनाश कई वार किया है । इस तीर्थ की यात्रा मुगल काल में भी होती रही है । पं: वनारसी दास ने भी अपनी यात्रा विवरण में इसका वर्णन किया है । प्राचीनता के नाम पर आज भी यहां स्तूप देखे जा सकते
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