Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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-:ગણ્યા છો તોર વહતે घटना मेरे जीवन में घटित हुई । आज जव में तीर्थ यात्राओं का वर्णन कर रहा हूं, इनमें एक तीर्थ यात्रा हरिद्वार की है जो मैंने अपने धर्मभ्राता श्री रवीन्द्र जैन के आग्रह से विधिपूर्ण सम्पन्न की । यह तथ्य सर्वमान्य है कि उत्तर भारत में हरिद्वार हिन्दू धर्म का सर्वमान्य तीर्थ है, यहां गंगा वहती है । गंगा हिन्दू धर्म, विशेष रूप से ब्राह्मण आस्था में बहुत महत्व रखती है । इसी आस्था को सम्मुख रखकर इसी गंगा किनारे १२ वर्ष के बाद कुम्भ लगता है । जहां देश-विदेश से करोड़ों यात्री डुबकी लगाकर स्वयं को धन्य मानते हैं । गंगा हिमालय के गंगोत्री स्थान से निकलकर हरिद्वार तक पहुंचती है । हनिद्वार के घाटों पर हजारों सालों से हिन्दू यात्री, साधुओं के झुण्ड हर रोज आते हैं । हरिद्वार में हजारों मन्दिर, आश्रम, अन्न क्षेत्र हैं । गंगा से एक हिन्दू का जन्म से मरण तक का संबंध जुड़ा हुआ है । उत्तर भारत के लोग हर रोज यहां पुण्यार्जन हेतू स्नान करते हैं । इस तरह वे आश्रमों में साधुओं के दर्शन करते हैं । मन्दिरों की पूजा, अर्चना में भाग लेते हैं । जिस स्थान पर मुख्य स्नान होता है, उसे हरि की पौड़ी कहते हैं । यहां भी अन्य तीथों की तरह हर धर्म, राष्ट्र, जाति के लोग आते हैं ।
मैंने अनेकों वार इस स्थल की यात्रा की है पर यह विभिन्न कान थी कि मेरे धर्मभ्राता ने इस स्थान की यात्रा नहीं की थी । इसके कई कारण थे । सवसे बड़ा कारण किसी सहयोगी का साथ न मिलना, दूसरे किसी तीर्थ पर विना प्रयोजन से कोई नया व्यक्ति अकेला नहीं जा सकता । वैसे भी विना कारण व्यक्ति का घर से निकलना कठिन है । हमारे धर्माता रवीन्द्र जैन ने मुझसे कई वार हरिद्धार देखने की इच्छा जाहिर की । ऐसा कोई कारण नहीं था कि हम दोनों यात्रा सम्पन्न कर पाते और मैं अपने
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