Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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- आस्था की ओर बढ़ते कदम धर्मभ्राता की इच्छा पूरी कर पाते ।
पर जव अनुकूल अवसर आता है तो सारे कार्य ठीक होने लग जाते हैं । ऐसा ही समय हमारे जीवन में आया । आचार्य श्री सुशील मुनि जी की वरसी का महोत्सव दिल्ली में आचार्य डाक्टर साधना जी महाराज के नेतृत्व में मनाया जाना था, उसके लिये निमन्त्रण मिला, हम गोविन्दगढ़ से गाड़ी द्वारा हरिद्वार रवाना हुए । यहां हजारों की संख्या में जहां वैष्णव मन्दिर हैं वहां अब हरिद्वार में जैन धर्म के तीन मन्दिर वन चुके हैं । एक दिगम्बर मन्दिर जो हरि की पौड़ी के पास वाली गली में स्थित है । दूसरा श्री चिन्तामणि पाश्वनाथ जैन श्वेताम्बर जैन मन्दिर, जो दूधाधारी के आश्रम के पास स्थित है । यह मन्दिर धर्मशाला युक्त है । वह भव्य मन्दिर पिछले वर्षों में बना है । इस नन्दिर में हर तल पर चार समोसरण युक्त प्रतिमाएं हैं । नीचे तल में एक मन्दिर में प्रतिमाएं हैं । इस मन्दिर में एक उपाश्रय, भोजनशाला, लाईब्रेरी, धर्मशाला है । यह मन्दिर ऐसी जगह स्थित है जहां गंगा नदी मन्दिर के पास से वहती है । इस मन्दिर के कारण अधिकांश जैन साधु-साध्वियों का हरिद्वार, ऋषिकेष तक यात्रा संभव हो चुकी है । मेरे मन में अपने ६ गर्मभ्राता को यात्रा के अतिरिक्त वह मंदिर दिखाने की योजना थी । हमारी हरिद्वार यात्रा :
हमने मूलतः दिल्ली जाना था । रास्ते में अचानक ही यह प्रोग्राम वन गया । मैं अपने धर्मभ्राता रविन्द्र जैन की इच्छा पूरी करना चाहता था। अचानक ही जव मैंने ड्राईवर से कहा कि गाड़ी हरिद्वार ले जाओ । इस बात को सुनकर मेरे धर्मभ्राता रविन्द्र जैन के मन में मेरे प्रति श्रद्धा के चिन्ह
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