Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti

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Page 427
________________ -स्था की ओर बढ़ते कदम यहां १००० वर्ष पुराना दिगम्बर मन्दिर है । यहां जैनों की वरती है । आचार्यश्री जयपुर में एक भब्य स्थान में ठहरे थे, इस स्थान के पास ही उनका प्रवचन स्थल था । आचार्यश्री जहां निकलते, वहां सारा राजस्थान उमड़ पड़ता । इनके साथ एक छोटा वाजार चलता जहां राजरथान की बनी हर वरतु साहित्य मिल जाता । इस साहित्य में शास्त्र, चित्र, ध्यान साहित्य आसन से मिल जातः । उसी स्थल पर यात्रियों के रहने का व्यापक प्रबंघ था । आचार्य तुलसी का प्रवास राजस्थान की संस्कृति के खुले दर्शन का प्रतीक है । हम रिक्शे में एक स्थान पर बुचे, सुबह का समय था । आचार्य श्री प्रवचन रथल के पास एक मकान में चतुर्मास हेतृ विराजमान थे । उस दिन आचार्यश्री तुलसी अरवरथ थे । उन्हें श्वास की तकलीफ थी । हन दोनों ने उन्हें तिक्खतों के पाट से वन्दना की । वह हमें अच्छी तरह पहचानते थे । वह बार कहना चाहते थे, पर इस रोग के कारण वोल नहीं पा रहे थे । ऐसा हनने पहली वार देखा था । पास वैटे साधु-साध्वी चिन्तित थे । आचार्यश्री अपने धैर्य का पूरा प्रमाण प्रस्तुत कर रहे थे । हमने हर एक साधु-साध्वी के चरणों में वन्दन किया । फिर साध्वी प्रमुख कनकप्रभा से आचार्यश्री के स्वास्थय के वारे में बातचीत की । हमने अपना बेच युवाचार्य महाप्रज्ञ को समर्पित किया । इस साहित्य में अन्य पुस्तकों के साथ-साथ मेरे द्वारा लिखित अनजाने रिश्ते पुस्तक प्रमुख थी । युवा आचार्य से हमारी अपने साहित्य के बारे में बात हुई । उस समय कुछ कार्यकर्ताओं ने एक योजना हमारे सम्मुख रखी - सारे ध्यान साहित्य का पंजावी अनुवाद किया जाये, मैने इस बात के लिये हामी भर दी, पर किसी कारणवश हमें इस प्रसंग में कोई प्रगति नहीं मिली । कुछ 425

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