Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti

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Page 437
________________ - - - - -- - २४ की ओर : आते थे, उनकी भी यात्रा करनी जरूरी थी । हम नाथद्वारा बस स्टैंड पर आये, वहां किसी ने सलाह दी कि आप जीप द्वारा सफर करें, इसमें समय की बचत होगी और ज्यादा स्थल देख पाओगे । इसी दृष्टिकोण को सामने रखकर हम एक जीप पर सवार हुए । उसे यात्रा के बारे में समझा दिया । सांडेराव तीर्थ की यात्रा : रास्ते में हम जा हे थे तो सवप्रथम राणा प्रताप की हल्दी घाटी देखी । यह क्षेत्र उदयपुर जिले में पड़ता है । सांडेराव जैन कला का मुख्य केन्द्र है । यहां की प्रतिमा का इतिहास २५०० वर्ष पुराना माना जाता है। प्रतिमा के परिसर की कारीगरी सुन्दर है । यहां चमत्कारी मणिभद्र यक्ष का रथान है, टहरने के लिये धर्मशाला व भोजनशाला की व्यवरथा अच्छी है, यहां दूलनायक भगवान पारवनाथ जी हैं। श्री खूडाला यात्रा : सांडेराव से ६ कि.मी. की दुर्ग पर प्रनु धर्मनाथ की संवत १२४३ की प्राचीन प्रतिमा, कलात्मक मन्दिर में स्थित है, यहां भी ठहरने व भजन की सुन्दर व्यवस्था है, रास्ते में एक लिंग तीर्थ के दर्शन भी किये, जो नाथद्वारा से २५ कि. मी. की दूरी पर है । श्रीघाणेराव तीर्थ : इस तीर्थ का निम्ण राणकपुर जाने वाली सड़क पर हुआ है, इस गांव में रगकपुर तीर्थ के निर्माता धारणाशाह की चौदहवीं पौड़ी निवास करती है । यह नौमंजिला स्तूप है । जिसकी आटवी नौदों मंजिल में चतुर्मुखी मन्दिर है । दो जैन मंदिर इस कीर्ति स्तम्भ के पास हैं जो कला का सुन्दर 135

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