Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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= आस्था की ओर बढ़ते कदम अस्वीकार कर दिया । राजा ने इसका कारण पूछा तो रानी चेलना ने उसे एक घटना सुनाई जिसका इस शहर से बहुत सम्बन्ध है । रानी चेलना ने कहा मैं तुम्हें राजा कैसे मान लूं ? तू तो दुष्ट है, जब तू मेरे गर्भ में था तव मेरे मन में राजा श्रेणिक के कलेजे का मांस खाने की इच्छा हुई थी । मैं टुःखी रहने लगी । तेरे पिता से. मेरा दुःख देखा न गय. । उन्होंने अभयकुमार की समझ से मेरी यह इच्छा पूरी कर दी। मुझे तुम्हारे भविष्य का भी पता चल गया कि तू अपने पिता के लिये कष्टकारी है । मैंने अपना गर्भ गिराने की चेप्टा की, पर मैं असफल रही । फिर तेरा जन्म हुआ तो मैंने तुझे खड़ी पर फिंकवा दिया । अचानक राजा श्रेणिक अरूढ़ी के पास आये, वह तुम्हें गंदगी के ढेर से उटा लाये । तुम्हारी अंगुली को मुर्गे ने खा लिया था । तुम्हारे शरीर में पीक पड़ चुकी थी । उन्होंने उस पीक को अपने मुंह से चूसा, तुम्हारा हर प्रकार से ध्यान रखा । मुझे मेरे इस कार्य के लिये उपालम्व दिया । मैं शर्मसार थी । अव तूने अपने भाईयों को मारा, मेरे पिता को मार पीटकर, अपने पिता को तूने कारागृह में डाल दिया है । इस घोर पाप के वाद तू राजा वनकर मेरे को मुंह दिखाने आया है। तुझे अपने कृत्य पर शर्म आनी चाहिये । मैंने तुझे जन्म देकर अपनी कोख को कलंकित किया है, तू दुष्ट है, मेरी नजर से दूर हो जा, मुझे अपने पति की शरण चाहिये तू हम लोगों को मौत दे दे ।"
की चेलना की फिटकार का श्रेणिक पर गहरा असर हुआ । वह हथौड़ा लेकर कारागृह में पहुंचा, वहां राजा श्रेणिक वेड़ियों से जकड़े जीवन की अंतिम घड़ियां गिन रहे थे । ज्यों ही उन्होंने श्रेणिक को हथौड़ा लेकर आते देखा, तो श्रेणिक सोचने लगे, पहले तो यह मुझे हंटरों से पीटता था ।
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