Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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आस्था की ओर बढ़ते कदम थी । इस लाठी की महानता हमें अव प्रतीत हो रही थी । अब सांस फूल रहा था, हम काफी चढ़ाई पर थे । नीचे देखने से हमें यह नहीं लगता था कि हम नीचे का रास्ता पैदल चल कर आये हैं। रास्ते में रुकना भी भयंकर प्रतीत होता था, चढ़ने का उत्साह बना हुआ था 1
करीव दस बजे हम पहली टोंक पर पहुंचे । यह हमारे लिये मांगलिक गणधर गौतम स्वामी की टोंक थी । उसे वन्दना कर ऊपर लिखित टोंक आने लगीं हर टोंक का अपना शिखर है । परिक्रमा के लिये पक्का नार्ग है । यह चरण अधिकांश भूरे पत्थर पर उत्कीर्ण हैं । सभी वेदियां संगमरमर की बनी हुई हैं । यात्रा शुरु हो चुकी थी, हर तीथंकर की टोंक का शास्त्रों में अलग नाम है । उस टोंक की स्तुति व परिक्रमा करके चावल चढ़ाये जाते हैं । इसी परम्परा का निर्वाह भी हम कर रहे थे । पर्वत की यात्रा करते हमें दो घण्टे बीत चुके थे । पास ही एक ऊंचे पहाड़ पर एक टोंक देखी, इसकी चढ़ाई एक किलोमीटर है, इतना ही उतराना पड़ता है ! ज्यादा यात्री इस टोंक को छोड़ देते हैं, पर मेरे मन में ऐसा करने का विचार नहीं था । हम दोनों इस टोंक पर चढ़े। चन्द्रप्रभु की टोंक की पहाड़ी का नाम भी चन्द्रप्रभु पहाड़ी है, हम वापिस आये तो आसपास तीर्थंकरों की टोंकों के दर्शन करते रहे । दोपहर के २.३० वजने को थे । हमारी आधी यात्रा सम्पन्न हो चुकी थी ! हम यात्रा के अगले महत्वपूर्ण पड़ाव की ओर आगे बढ़े ।
जल मन्दिर की. की यात्रा :
हम जलमंदिर पहुंच चुके थे । हम जलमंदिर के वारे में क्या वर्णन करें ? यह पर्वत के मुकुट का नगीना है । यहां शीतकुंड का झरना मन्दिर जी शोभा में चार चांद लगाता
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