Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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आस्था की ओर बढ़ते कदम
नहीं, हम तो मात्र जैनधर्म के असूलों को मानने वाले हैं । मेरा धर्मभ्राता रवीन्द्र जैन थक चुका था । मैंने होटल में भोजन तैयार करवाया, तब तक वह सो चुका था, मैंने उसे उठाया और खाना खाने को कहा । उसने बहुत अल्पमात्रा में खाना खाया । अव रात्रि काफी व्यतीत चुकी थी, यहां की मार्किट रात्रि को भी खुली रहती है । मैंने परिजनों को भेंट करने के कुछ उपहार खरीदे । जैन तीर्थ पर यही उपहार प्रसाद होता है । रात्रि बीती, सुबह हुई, हमने पुनः सारे मन्दिरों के दर्शन किये ।
मंदिरों में दर्शन पूजा से अभूतपूर्व शांति मिली । यह तीर्थ तीर्थराज है । यहां इतना शांत वातावरण है कि भिन्न-भिन्न देशों-प्रदेशों, भाषा, संस्कृतियों के यात्रियों के दर्शन होते हैं । यहां अनन्त तीर्थकर आये, भविष्य में भी आयेंगे और मोक्ष प्राप्त करेंगे । दिगम्वर मान्यता तो यह कहती है कि तीर्थंकर जन्म अयोध्या में लेते हैं, मोक्ष समेदशिखर से जाते हैं । पर वर्तमान चौबीसी में यह आश्चर्य हुआ है कि तीर्थंकर कई स्थानों पर जन्ने | चौबीसवें में से २० ही यहां मोक्ष पधारे । धर्मशाला के यात्रियों से नजदीक पड़ने वाले तीर्थों के वारे में पूछा । एक यात्री ने बताया यहां से २८ कि.मी. की दूरी पर प्रभु महावीर का केवलज्ञान स्थान है, पर १६ कि.मी. दूरी पर श्वेताम्बर जैन समाज द्वारा मान्य लछुवाड़ है जो अपभ्रंश नाम है । इसका असल नाम लिच्छवी वाड़ होना चाहिये क्योंकि प्रभु महावीर लिच्छवी कुल के थे । उनका वंश ज्ञातृ
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