Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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आस्था की ओर बढ़ते . स्वरूपों में स्थापित है । यह लंका, वीयतनाम, कन्या, इंडोनेशिया, चीन, सिक्किम, भूटान, जापान, ब्रह्मा, , देशों के मन्दिर देखने योग्य हैं । यह मन्दिर कला का । है । इंन मन्दिर में सोने की भी प्रतिमाएं हैं । ____ हम भी यहां दोपहर को पहुंचे । यह स्थल आप पूः ।। चाहें तो कितने दिन रह सकते हैं, पर हम तो महात्मा का ज्ञान स्थल देखना चाहते थे । हम कुछ ही समय के । ऑटोरिक्शा से बौद्ध गया पहुंचे । वुद्ध का यह प्रा। मन्दिर अपने भव्य शिखर तथा प्राचीन कला का प्रतीक है । यहां स्वयं राजा अशोक आया था, यह मन्दिर शायद अभी के समय बने हों, पर वह चबूतरा व वृक्ष वहां पहले का था । कुछ ही समय वाद हम मन्दिर परिसर में पहुंच गये !
हनने बौद्ध गया मे अनुपम श्रद्धा देखी । वहां स्थान आत्या भक्ति के दर्शन होते हैं । फिर हम दोनों में विभिन्न देने के मन्दिरों के दर्शन किये । यहां हमें बहुत से बौद्ध भिनुमों में मिलने का अवसर मिला । दोपहर हो चुकी धी, हम खाना खाने की तलाश करने लगे । यहां अधिकांश होटल शुद्ध नरः । सो वस स्टैंड पर एक शुद्ध होटल भिल गया । हन हन्गा मारवाड़ी होटल में खाना खाते थे, ऐसे होटलों में बरेल खाना बनता है । शुद्ध शाकाहरी खाना ही जैन श्रावनों के लिये शोभा देता है, वही जैन धर्म की पहचान है । चीन काल से ही जैनों में खाने को व्यवस्था समाज क. अं रही है, जिसे जैन लोग सहधर्ना वात्सल्य कहते हैं वाराणसी की और
बस स्टैंड से हमने सफर में तेजी लाने के लिये वाराणसी के चे एक टैक्सी पकड़ी । यह गाड़ी एम्बैसडर धी । माडी ली, हम जी.टी. रोड पर चल रहे थे ।
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