Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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आस्था की ओर बढ़ते कदम
भक्ति में डूवा रहता है । यहां की धरती के सूक्ष्म कणों में वह शक्ति है कि व्यक्ति को दूर से खींचती है ।
वाराणसी में सभी कुछ देखने योग्य है । मार्ग में व्यास देव का मन्दिर है । इन सभी मन्दिरों में हमें कुछ क्षण प्रभु को नजदीक पाने का अवसर मिला । यहां की जीवनशैली अपनी पहचान आप है । यहां के लोग बहुत मीठा बोलते हैं । सभी लोग बहुत मेहनती व धार्मिक हैं, सभी प्रभु से डरते हैं । यहां आकर जाने को दिल नहीं करता । घर वापसी
पर जव व्यक्ति घर से निकलता है तो उसे यात्रा समाप्त कर वापस घर आना होता है । इसी दृष्टि से अव हम धर्मभूमि को प्रणाम कर आगे बढ़ने वाले थे । हम वापस आने का प्रोग्राम बनाने लगे । हम मुगल सराय स्टेशन पर पहुंचे ।
फिर उसी स्टेशन से राजधानी गाड़ी द्वारा रात्रि को २ बजे चले, हमें टिकट मिल चुकी थी, सुवह देहली पहुंचे । देहली से बस द्वारा अपने घर पहुंचे । हम यात्रा से वापस आये, अपने-अपने घर पहुंचे । मन में एक प्रेरणास्पद यात्रा थी । इस यात्रा के माध्यम से हम जैन संस्कृति, इतिहास व कला के वारे में जान चुके थे । हमारी लम्बे समय से पलने वाली इच्छा पूरी हो रही थी । यह यात्रा हमारी देव, गुरु व धर्म के प्रति आस्था का प्रतीक थी । इस यात्रा के कारण हमारा सम्यक्तव दृढ़ हुआ है । इस यात्रा के माध्यम से हमें हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, विहार में तीर्थ यात्रा करने का अवसर मिला । इन प्रदेशों का रहन-सहन, सभ्यता, भाषा व परम्पराओं को जानने का अवसर मिला । इन तीर्थ स्थानों के पुद्गल प्रमाण इतने पवित्र हैं कि जन्म जन्म तक आत्मा निर्मल व पवित्र हो जाती है । इन तीर्थों पर पहुंचते ही मन
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