Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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हम आगे बढ़ रहे थे, वर्षा पड़ रही थी । कुछ ही समय के वाद हमें इस पर्वत का सबसे ऊंचा शिखर दिखाई दिया । यह शिखर प्रभु पार्श्वनाथ की टोक थी । यह अन्तिम शिखर
था ।
वर्षा से हम पूर्ण रूप से भीग चुके थे, हमने प्रभु पार्श्वनाथ की टोंक में बैठकर आराम लिया । हमें टोंक से पहुंचने से पहले एक खाली डोली वाला मिला, जिसने हमें डोली में बैठने का आग्रह किया । हमारे द्वारा यही उत्तर था कि इस समेत शिखर जी की यात्रा हमें पैदल ही करनी है । हम किसी के कंधे पर चढ़कर जाना ही नहीं चाहते । यह टोंक वहुत भव्य है । इस पर चढ़ने के लिये पक्की सीढ़ियों का निर्माण किया गया है । इसकी दो मंजिलें हैं, निचली मंजिल प्रभु पार्श्वनाथ की समाधि चरण है, हमने वहां पूजा की, यहां भी पुजारी विधि से पूजा करा देता है । यहां हमें बैठे-बैठे ४ बज गये । वर्षा थमने का नाम नहीं ले रही थी । इधर गर्मी के दिन बड़े होते हैं, इस तरीके से हमें दिन वड़ा नजर आ रहा था । यात्रा में समय का कोई ध्यान न रहा । हम वर्षा रुकने का इंतजार कर रहे थे ।
चमत्कार :
वर्षा रुकने पर हम चले जब हम पर्वत से नीचे उतर रहे थे तो एक भाई ने शिखर पर से पूछा, "आप यात्री हो ?" मैंने कहा, "हां हम यात्री हैं ।" उसने कहा "नीचे स वायरलस आया है, आप जल्दी नीचे पहुंचो, आप को लेकर सारी धर्मशाला में चिन्ता व्याप्त है ।" फिर उसने हमसे देरी का कारण पूछा । मैंने कहा, “भैय्या ! क्या करें, भारी वर्षा के कारण हम पार्श्वनाथ की टोंक में रुक गये थे । जव वर्षा थमी तो हम नीचे उतर रहे थे ।" उस भाई ने कहा, “तुम
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