Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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आस्था का आर बढ़ क
होती है । हम पर्वत राज की ओर बढ़ने लगे । कुछ ही किलोमीटर चलने पर सीतानाला आया । यहां एक बार पुनः चाय पी, क्योंकि सुबह के नाशते का कोई स्थान इस तीर्थ स्थान पर नहीं, वैसे भी ऊपर शुद्धि का काफी ध्यान रखा. जाता है । यह स्थान प्रदूषण मुक्त स्थान है ।
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अपने सहधर्मीयों के साथ तीर्थकर परमात्मा के गुणगान गा रहे थे, हम आगे बढ़ रहे थे, रास्ते में एक डोली वाला मिला । इस डोली को चार आदमी उठांते हैं । एक वांस की वहंगी में एक हल्का आसन लगाया जाता है जिसे रखने और उठाते समय डोली वाले पार्श्वनाथ की जय बोलते हैं । सारा पर्वत जयकारों से गूंज रहा था । हम एक ऐसे संसार में पहुंच चुके थे, जहां हमें एक ही स्थान नजर आता था. वह --- था समेत शिखर । यात्रा कठिन जरूर है, पर इस यात्रा में यात्री कभी थकते नहीं । जीवन में परम सौभाग्य से ऐसे.. तीर्थ के दर्शन हो रहे थे, जहां एक नहीं, दो नहीं, २४ में से २० तीर्थंकर मोक्ष गये । अनन्त चरित्रात्माओं ने मोक्ष प्राप्त किया था ।
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जिस स्थान से प्रभु मोक्ष गये । पहले यहां उनके मन्दिर थे जो शिखर वेध थे, परन्तु अकवर के काल में बिजली गिरने से सारे मन्दिर समाप्त हो गये, तो समाज ने उन स्थानों पर चरन चिन्हों की स्थापना की, जिनका समय-समय पर जीर्णोद्वार होता रहा है, जिनका पहले वर्णन किया जा चुका है ।
सीतानाले के बाद हमें उन दोनों को सिपाहियों को छोड़ना था । वहां से हम और वह छोटा सा नौकर जो काफी होशियार था और रास्ते का जानकार था, हमारे साथ था ।
हमें अब सीधी और कठिन चढ़ाई शुरु करनी थी जो तीन किलोमीटर से अधिक थी । अब लाठी ही हमारा सहारा
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