Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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- आस्था की ओर बढ़ते कदग सम्वन्धित शासनदेव, देवीयों की प्रतिमाएं थीं । यह मंदिर शिखर जी के नीचे सबसे करीव है ।
एक भव्य मंदिर गुजराती समाज का था, जिसकी अपनी धर्मशाला थी । यहां विशेष रूप से गुजराती ठहरते हैं, यहां गुजराती खाना आराम से मिलता है, रात्रि को पहुंचने का फायदा यह रहा कि हमने सभी मंदिर की आरती में कुछ समय के लिये भाग लिया । फिर हम खाना खाने के लिये बाजार में आये, वहां थकान के कारण कम भोजन ही लिया, पर मैं एक एक बात उल्लेख करना चाहता हूं कि मेरे धर्नभ्राता रवीन्द्र जैन के पांवों में एक पत्थर चुभने के कारण चोद लगी । इतना घाव होते ही उसने मेरे साथ यात्रा में मेरा साथ दिया । वह सव उसका मेरे प्रति समर्पण भाव का चिन्ह
भोजन करने के बाद हमने सुवह का कार्यक्रम तय करना था । हमने धर्मशाला के मुनीम से यात्रा के बारे में पूटा तो उन्होंने कहा कल यहां वर्षा हुई थी, कल को कोई यात्रा वहां नहीं जा सकेंगे । पहाड़ की फिसलन है । मैंने कहा 'मौसम जैसे भी हों, हमें कल यात्रा करवायें । मुनीम जी ने कहा, “ऐसी बात है तो दादा भौमिया के यहां प्रार्थना में शामिल हो जाओ, सुबह चार बजे आपको उठायेंगे। यहां पात्रा में उपवास किया जाता है, अगर आप नहीं कर सकते तो कोई बात नहीं, कोई नकदी हो तो जमा करवाकर रसीद ले लो, बाकी पूजन सामग्री भेंट ले लो, सुबह तो आपको यात्रा करनी ही है ।" ___ मैंने मुनीम जी की सारी बातों को ओर ध्यान दिया । उन्होंने हमें यह भी पूछा कि आपको डोली चाहिये तो वजन करवा लो, सुवह डोली वाला सुविधा से यात्रा करवा देंगे । मैंने कहा, 'हम प्रभु दर्शन पैदल करेंगे, उन्होंने हमारा नाम
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