Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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-RAI की ओर बढ़ते कदम _पर यह वात हो ही रही थी कि देवविमान यज्ञ वेदी से ऊपर से होकर आगे चले गये । इन्द्रभुति परेशान हो गया । इन्द्रभुति को हैरानी थी कि देवता यज्ञभूमि छोड़ आगे कहां जा रहे हैं, पता करना चाहिये, गौतम स्वामी ने पता किया तो उन्हें पता चला कि एक क्षत्रिय महावीर की धर्म सभा में जा रहे हैं, देव ऐसा क्यों कर रहे हैं ? यह तो वेद का सरासर अपमान है । ऐसा कौन इन्द्रजालीया है जो देवों को अपने जाल में फंसा रहा है ?" इन्द्रभूति को देवताओं का यज्ञ मंडप से जाना ब्राह्मण व वेद का अपमान लगा। उसने कहा कि 'मैं अभी जाकर उस इन्द्रजालिये के दम्भ को समाप्त करता हूं । इस घोषणा के बाद वह अपने शिष्य परिवार के साथ प्रभु नहावीर के समोसरण की ओर बढ़े ।
प्रभु महावीर का आकर्षण अद्भुत था । इन्द्रभूति ने सोचा कि मैं अभी जाकर उस व्यक्ति के पाखंड का भांडा चौराहे में तोडूंगा । लोगों को गुमराह करने वाले प्रचार से सावधान करूंगा । पर अगर मैं ऐसा न कर सका तो घर वापस नहीं आऊंगा । उनका शिष्य वनकर जीवन गुजालंगा ।
अहं से भरे गौतम के कदम समोसरण की ओर बढ़ रहे थे । वह जव यज्ञभूमि से चला था तो अपने अहंकार में दुवा था । पर ज्यों-ज्यों समोसरण के नजदीक आता गया ननोचरण के प्रभाव से उसका क्रोध शांत हो गया । तीथंकर प्रभु के अतिशय ने उसे प्रभावित किया, वह प्रभु महावीर के सामने आया । प्रभु महावीर ने कहा, “गौतम ! आ गये !"
अपना नाम सुनकर उसका अहंकार और दृढ़ हो गया । उसने सोचा "यह इन्द्रजालिया तो मेरा नाम भी जानता है, यह तो इसके लिये सहज है आज के युग में कोई भी मेरे नाम से अपरिचित नहीं । अगर यह भी जानता है
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