Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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- आस्था की ओर बढ़ते कदम परम्परा में इस पर्वत राज को समेतशिखर कहते हैं ।
इस तीर्थ के जीर्णोद्वार का लम्बा इतिहास है । नवी सदी में आचार्य श्री यशोदेय सूरि जी के परम शिष्य श्री प्रद्युमनसूरि ने लम्बा समय यहां पर विहार किया था । अनेकों श्रीसंघ समेतशिखर पर यात्रा के लिये आए थे, फिर यह तीर्थ धर्माराधना का शिखर होना शुरु हो गया । इस सदी के अंत में इन मंदिरों का जीणोंद्वार हुआ ।।
सम्राट अकबर ने सन् १५६२ में आचार्य हीरा विजयसूरि से प्रभावित हो यह तीर्थ उन्हें भेंट में दे दिया । आगरा के श्री कुमारपाल सोनपाल लोहा ने सन् १६७० में यहां के जिनालय का जीर्णोद्वार किया ।
सन् १७५२ में दिल्ली के वादशाह अलीखान बहादुर से मुर्शिदावाद के सेट महतावराय को जगत सेट की उपाधि से विभूषित किया । उन्हें मधुवन कोठी, जयपारनाला, जलहरि कुण्ड, पारसनाथ तलहटी पहाड़ उन्हें भेंट स्वरूप दे दिया । सं० १८०६ में इसी सेट को बादशाह अहमदशाह ने उन्हें ३०१ दीघा जमीन भेंट में दी।
सं० १८१२ में वादशाह अब्बु अली खान ने पवित्र पहाड़ को कर मुक्त कर दिया । श्री महतावराय इस पहाड़ का जीर्णोद्वार करना चाहते थे, पर उन्हें मौत ने आ घेरा । उनके पुत्र सेट खुशहालचंद ने इस कार्य को सम्पन्न किया । उन्होंने दैवी संकेतों से २० टुकों का निर्वाण किया । इन टोंकों की प्रतिष्ठित सन् १८२५ माघ शुक्ला तृतीय को आचार्य धर्मगिरि के कमलों से हुई । इसी जीर्णोद्वार के अंतरगत जलमंदिर, मधुवन में सात मन्दिरों, धर्मशाला, पहाड़ पर श्री भोमिया निर्माण हुआ ।
. स० १६२५ से १६३३ तक इस तीर्थ का पुनः जीर्णोद्वार के अन्तर्गत ही भगवान आदिनाथ भगवान वासुपूज्य, नेमिनाथ,
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