Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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= आस्था की ओर बढ़ते कदम
प्रकरण १२ मेरी जैन तीर्थ यात्राएं
जीवन भ्रमण का प्रमुख स्थान है । भ्रमण हर प्रकार से ज्ञानवर्धक है । जव हम इतिहास स्थलों का भ्रमण करते हैं तो हम आस्था और श्रद्धा से भरे होते हैं । जो यात्राएं आस्था से की जाती हैं, वो आस्था के नए आयामों को जन्म देती हैं । इस दृष्टि में तीर्थ का महत्वपूर्ण स्थान है । जैन धर्म में दो प्रकार के तीर्थ माने गये हैं :
क) स्थावर ख) जंगम स्थावर तीर्थ :
स्थावर तीर्थ उस तीर्थ को कहते हैं जहां कोई प्रतिमा भूमि से प्राप्त होती है अथवा जिन स्थानों के तीर्थकरों के कल्याणक हुए वह सभी क्षेत्र ‘स्थावर तीर्थ' कहलाते हैं। भारत में हर राज्यों में तीर्थो की स्थापना है । इन तीथों में श्री महावीर जी, नाकोड़ा पार्श्वनाथ आदि तीर्थ ·आते हैं इतिहासिक तीथों में २४ तीर्थंकरों के वह क्षेत्र आते हैं, जहां तीर्थकरों के पांच कल्याणक हुए, उनसे सम्वन्धित कोई इतिहासिक घटना हुई । इन तीथों में अयोध्या, राजगिरी, पावापुरी, हस्तिनापुर, प्रयागराज, वाराणसी, गिरनार समेत शिखर, पालिताना प्रमुख हैं । कई तीर्थ अपनी कला के कारण प्रसिद्ध हैं जिनमें राणकपुर, देवगढ़, आबु, अचलगढ़, केशरीया, कांगड़ा, हरिद्वार व श्रवण वेलगोला के नाम से प्रसिद्ध हैं । मैंने जो तीर्थ यात्राएं की हैं, उनके पीछे इतिहास व श्रद्धा दोनों छिपे हैं । यह तीर्थ मेरी आस्था का केन्द्र हैं । यहां आकर मानव को वीतरागता के दर्शन होते हैं । प्रभु
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