Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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= आस्था की ओर बढ़ते कदम ने करवाया यहां पाटल वृक्षों की भरमार थी, इस कारण इसका नाम पाटलीपुत्र पड़ा । यहां घना जंगल था तथा पाटल वृक्ष की भरमार थी । इसी कारण श्रेणिक की नई राजधानी का नाम पाटलीपुत्र पड़ा । मौर्य काल तक यह नगरी अपने विकास की चरम सीमा तक पहुंच चुकी थी ।
पाटलीपुत्र का नाम धीरे-धीरे पटना पड़ गया । इसका प्राचीन नाम पाटलीपुत्र है । यह नाम जैन ग्रंथों में उपलब्ध होता है । जैन आगमों की एक वाचना यही पर सम्पन्न हुई । यहीं आचार्य रथूलिभद्र का जन्म हुआ । कौशावेश्या के वहां लन्बा समय बिताया । मुनि बनने के बाद इसी वेश्या को धर्म उपदेश देकर साध्वी बनाया। नंद वंश के राज्य में स्थूलिभद्र के पिता, भाई मन्त्री रहे थे । उनके भाई सायु वने । सात वहिनों ने दीक्षा ली । यहीं महावीर के श्रावक सुदर्शन का रथान है, उनसे सम्बन्धित कुंआं गुलजार बाग में स्थित है । सभी धमों के लिये यह पवित्र स्थान है । गंगा
नदी पर विशाल पुल गांधी ब्रिज के नाम से संसार में प्रसिद्ध -है। अंग्रेजों ने इस शहर के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया । सिक्खों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह का जन्न स्थान भी पटना है ।
राजगृह से श्रेणिक कुछ समय तक चम्पा में रहा । फिर उसने राजधानी वनाया । जैसे पहले वताया गया है मौर्य वंश के शासनकाल में यह राजधानी इतने विकास पर थी कि चीनी व यूनानी यात्रियों ने इस नगर की प्रशंसा को है । यह नगर इतिहासिक व पुरातत्व की धरोहर है ।
यह नगर सभी धमों व परम्पराओं से संबंधित प्राचीन नगर है । यहां विहारी भाषा में लोग वातचीत करते हैं । यहां के लोगों में जैन धर्म के बारे में जानकारी न के बराबर है । असल में मारवाड़ी और राजस्थानी व्यापारी तीर्थक्षेत्र को
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