Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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आस्था की ओर बढ़ते कदम
जोखिम में डालना है, पर हमें तो प्रभु महावीर का आशीर्वाद प्राप्त था । हमें किसका भय हो सकता था । भय तो हिंसा का लक्षण है, अहिंसा तो अभय प्रदान करती है ।
हम पटना में होटल की तलाश में घूम रहे थे । रात्रि के ११ वजे हमें होटल राजस्थान मिला । आधी रात्रि में हमें खाना मिला, जैसे-तैसे खाना खाया, पर रात्रि की थकावट के वाद सो नहीं सके क्योंकि आगे का कार्यक्रम तय करते रहे । विहार में गर्मी भी अधिक पड़ती है और ठंड भी अधिक पड़ती है । होटलों वाले से विहार में हमारा पहला अनुभव था फिर भी होटलों की सेवा अच्छी थी । शुद्ध शाकाहारी भोजन प्राप्त हो गया था I
जैसे-तैसे करते रात्रि गुजरी, सवेरे को तैयार हुए, अव अगले मुकाम की तैयारी थी, पहले नाश्ता किया, फिर वस स्टैंड पर पहुंचे । हम राजगुह जाना चाहते थे । इसके लिये बस तैयार खड़ी थी । हमें यह भी पता चला कि कई टूरिस्ट बसें पटना, बिहार शरीफ, राजगिरी (राजगृह) पावापुरी की यात्रा करवा शाम को पटना वापस हो जाती थीं । पर हम तीर्थ यात्री थे । तीर्थ यात्रा के जो नियम होते हैं । उनका पालन यथासंभव हमें करना था, पर रात्रि भोजन का नियम नहीं चल सका, यह हमारी कमजोरी है कि इस नियम का पालन नहीं कर सके । एक और बात बताने की है कि वैशाली की स्थापना इक्ष्वाकु और अलम्भुषा के पुत्र विशाल ने की थी, कई भागों को मिलाकर इसे विशाल रूप दिया गया, इसी कारण इसका नाम वैशाली पड़ा । यहां ठहरने के लिये एक जैन धर्मशाला व विहार सरकार पर्यटन विभाग का सूचना केन्द्र है । दोनों स्थानों के अतिरिक्त टूरिस्ट गैस्ट हाऊस में ठहरने की व्यवस्था है । परन्तु इस व्यवस्था का पता हमें काफी समय के वाद चला। हाजीपुर से वैशाली की
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