Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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- आस्था की ओर 46l कम अप्रकाशित प्राकृत साहित्य
हमारे द्वारा कुछ अन्य प्राकृत आगमों का पंजाबी भाषा में अनुवाद किया गया है। उनमें कुछ आगनें का अनुवाद शीघ्र प्रकाशित है। इन आगमों का संक्षिप्त परिचय हम दे रहे हैं : दशवेंकालिक सूत्र १ :
वह मूल सूत्र है। जैन श्वेताम्वर परम्परा में हर नवदीक्षित साधु साध्वी को इस का अध्ययन आवश्यक है। इस में पांच महाव्रत, पांच समिति त्रस स्थावर जी का वर्णन, भिक्षा के ४२ दोषों का वर्ण है। यह शास्त्र जैन धर्म में आचार शास्त्र है। शास्त्र का पहला श्लोक वहुत महत्वपूर्ण है। जिस में कहा गया है :
“धर्म श्रेष्ट नंगल है, धर्म का आधार अहिंसा, संयम व तप है। जो ऐसे धर्म की अराधना करता है उसे स्वर्ग के देवता नमस्कार करते हैं।'
‘साधु गाय की भांति भिक्षा प्राप्त करें, जैसे गाय मैदान में घास खाती है पर घास को हानि नहीं करती, जैस भमरा फूलों से रस चूसता है , उसी प्रकार साधु गृहस्थी के यहां आहार करे।" ।
आचार की बात करते हुए कहा गया है " साधु अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, महाद्रत व रात्री भोजन का त्याग करे। परिग्रह वृति पाप का कारण है। यत्ना से चलता, खाता, पीता, भिक्षु पाप कर्म का वंध नहीं करता।
जन साधारण के लिए कहा गया है कि 'क्रोध, प्रेम का नाश करता है। इस लिए क्रोध को जीतना चाहिए।'
इस शास्त्र का संकलन आचार्य शयम्भव ने पूर्व
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