Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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- स्था की ओर बढ़ते कदर वाले पधारे थे। . .. .. .. आचार्य श्री सुशील कुमार जी महाराज से यह हमारी अंतिम मुलाकात थी। वह काफी. अस्वस्थ्य होते हुए भी इस सम्मेलन में पधारे थे। वह हमारे वहुत पूज्य थे। वह अंतराष्ट्रीय स्तर के संत थे। जिन्होंने हमें अंतराष्ट्रीय सम्मेलनों में आमंत्रित कर, सौभाग्य प्रदान किया था। हम सारा जीवन उनके उपकार कभी नहीं भूला सकते। साध्वी श्री को इस विमोचन से अथाह प्रसन्नता हुई। उन्होंने हमें आत्मा से आशीवाद दिया जो उनका स्वभाव था।महाश्रमणी अभिनंदन ग्रंथ २ :
महाश्रमणी उपवर्तनी श्री स्वर्णकांता जी महाराज का ४०वां दीक्षा महोत्सव १९८६ में मनाया गया। टीक दस वर्ष वाद उनकी दीक्षा स्वर्ण जयंती. आने वाली थी। मेरे धर्म भ्राता श्री रविन्द्र जैन के मन में साध्वी श्री का अभिनंदन समारोह उत्सव मनाने हेतु उनकी शिष्याओं को तैयार किया। आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी महाराज की प्रेरणा हमें मिली। कुछ समय हम कई कारणों से चुप हो गए। परन्तु अनकी शिष्या साध्वी सुधा जी महाराज ने अचानक हमें देहली वुलाया। इस ग्रंथ पर कार्य करने की प्रेरण दी। हमें आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी महाराज ने प्रकाशन कार्य में हर तरह के सहयोग का आश्वासन दिया। इस कार्य को लेकर एक भव्य योजना वनी। साध्वी स्वर्णा अभिनंदन रथ समिति का निर्माण हुआ। इस का मुख्यालय. मालेरकोटला व अम्वाला रखे गए। ग्रंथ की रूप रेखा इस तरह वनाई गई। टिप्पणी : इस महाश्रमणी ग्रंथ की तैयारी व रूप रेखा का विवरण अलौकिक समारोह शीष के अर्न्तगत विस्तृत रूप में आगे दिया गया है।
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