Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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आस्था की ओर बढ़ते ... जाओ। मेरी पिंडी यहां स्थापित कर दो।" भक्तों ने आदेश का पालन करते हुए मंदिर स्थापित कर दिया। बंदा वहादुर के हमले के पश्चात् यह लोग सुनाम आ गए।
पास ही मुसलमानों का तीर्थ रोजा शरीफ है। जहां मेला लगा रहता है। देश विदेश से यात्री आते हैं। इस क्षेत्र में उच्चा पिंड संघोल, बोद्ध धर्म, का प्रमुख केन्द्र है। जहां ५वीं सदी से पहले की कला, सिक्के, प्रमिमाएं मिलती हैं। एक स्तूप भी महाराजा अशोक द्वारा निर्मित है। सरहिंद के इस गुरुद्वारे में सारे भारत वर्ष व विश्व के अन्य देशों से श्रद्धालु तीन दिन के भव्य मेले में आते हैं। भयंकर सर्दी में लाखों लोग इस स्थान पर पहुंच कर इतिहासक गुरूद्वारों के दर्शन करते हैं। श्री हसीजा ने इस समारोह को हमारे सम्मान के लिए चुना। इस की विधिवत् सूचना हमें दे दी गई। समारोह :
फतिहगढ़ साहिब की धरती जिस का कण-कण शहीदों के खून से पवित्र है। वहां एक भव्य समारोह का आयोजन भाषा विभाग ने सानिध्य में किया गया। यहां एक पुस्तक 'प्रदर्शनी विभाग ने लगाई। लोक संपर्क विभाग व विभिन्न विभागों ने अपने विभागों की प्रदर्शनीयां लगाई थी। स्टेज पर एक कवि दरवार व ढाडी दरबार का आयोजन किया गया। ढाडी पंजाव की लोक परम्परा है जिस में प्राचीन साजों द्वारा धार्मिक व लोक संगीत प्रस्तुत किया जाता। यह कथा वाचकों की पंजाबी किस्म है जो वीर रस की कविताओं का गान करते है। कई बार बिना साज के भी यह भजन गाते हैं। प्राचीन भारत में जो काम भाट लोग करते थे उसी तरह की एक परम्परा है। प्राचीन काल में युद्ध क्षेत्रों में सैनिकों को उत्साहित करने के लिए यह लोग काम करते थे।
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