Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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आस्था की ओर बढ़ते कदम दिल्ली से हमारा परिचय श्री हसीजा ने करवाया था। हमारे सूत्रकृतांग के लिए उनका संदेश उनके स्नेह का प्रतीक है। साध्वी श्री स्वर्णकांत जी महाराज व आचार्य श्री सुशील कुमार जी महाराज के प्रति उनके मन में गहरा सम्मान है।
श्री हसीजा लम्बे अंतराल के बाद भाषा विभाग के निर्देशक बने। वह हमेशा इच्छा रखते थे कि पंजाब सरकार की ओर से जैन विद्वानों का सम्मान किया जाए। पर उनके मन में जब भी कार्यक्रम बनता तो कोई न कोई
रूकावट आ जाती थी। हमारे लेखन के २५ वर्ष पूरे हा चुके _थे। श्री हसीजा डायरेक्टर पद पर सुशोभित हो चुके थे।
उन्होंने हमारे सम्मान करने का केस पंजाब सरकार के समक्ष रखा। यह सम्मान पंजाबी जैन साहित्य के २५ वर्ष पूर्ण होने पर था। श्री हसीजा एक ऐसा अवसर देख रहे थे जहां महान जन समूह हो। उन्हें ऐसा मौका मिल गया। फतिहगढ़ साहिब शहीदों की धरती है। जहां दशमेश पिता श्री गुरु गोविन्द सिंह जी के दो सपुत्रों को मुगलों ने दीवारों में चिनवाया दिया था। उस स्थान को श्री टोडर मल जैन ने मोहरें बिछा कर खरीदा था। इस कारण सिक्ख धर्म का जैन धर्म से काफी करीवी संबंध हो गया था। पटना साहिब की जिस हवेली में गुरू जी का जन्म हुआ था वह भी एक जैन श्रावक की थी। आज भी एक ही परिसर में प्राचीन जैन मंदिर व गुरूद्वारा स्थित हैं। आज उसी धरती पर गुरुद्वारा साहिब स्थित हैं। गुरूद्वारे में विशाल टोडर मल जैन हाल है जो भव्य पुरूष की भव्य स्मृति है। '
सरहिंद एक प्राचीन नगर :
सरहिंद शहर वर्तमान में फतिहगढ़ साहिब जिला
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