Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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- आस्था की ओर बढ़ते कदम उनका आर्शीवाद प्राप्त कर वापस घर आ गए। भाषा विभाग द्वारा सम्मान समारोह :
पिछले प्रकरणों में मैंने अपने जीवन में घटित आस्था के विभिन्न आयामों का वर्णन किया है। यह वर्णन मेरी श्रद्धा व भक्ति का प्रतीक है। जीवन में हर पल हर क्षण कुछ ऐसा घटित होता है। जिसे जीवन भर भुलाना असंभव रहता है। कुछ ऐसी घटनाएं घटित होती हैं तो जीवन का अभिन्न अंग बन जाती हैं। ऐसी घटनाएं होती हैं जो जीवन पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं। ऐसी ही घटनाओं में एक घटना है भारत सरकार की साहित्य अकैडमी से हमारे संबंध बनना। ..
__ एक दिन अंग्रजी के अखबार 'द ट्रिब्यून' में एक विज्ञापन देखा। उस में लिखा था कि “अगर आप लेखक हैं तो अपना वायोडाटा और अपने प्रकाशन की दो प्रतियां भेजीए। हमारा प्रकाशन Who's & Who प्रकाशित हो रहा है। उस में हम आप का नाम दर्ज करेंगें।"
मैने इस विज्ञापन को ध्यान से देखा फिर सोचा अगर हम अपना स्व-परिचय भिजवा दें, तो कोई नुकसान नहीं। मैंने इस संदर्भ में अपने धर्म भ्राता श्री रविन्द्र जैन से वात की। उस ने हामी भर दी। फिर अंगंजी भाषा में हम ने अपना स्व-परिचय इस ग्रंथ को भेजा।
___ हमें इस के लाभ का बाद में पता चला। कुछ ही समय के बाद हमारा भेजा परिचय प्रकाशित हो गया। चाहे इसे प्रकाशित होने में काफी समय लगा। हमें इस के प्रूफ प्राप्त हो गए। दो खण्डों में प्रकाशित इस महाकाया ग्रंथ में भारत के २००० से ज्यादा विभिन्न भाषाओं के लेखकों का परिचय व पता दिया हुआ है। इस के प्रकाशन में ३ वर्ष से ज्यादा समय लगा। पर यह एक अच्छा उपक्रम था। इस के
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