Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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आस्था की ओर बढ़ते कदम
परिवार, सभी का मातृ भाव से ध्यान रखना आप को आता है । साध्वी श्री स्वर्णकांता जी महाराज ने अपनी शिष्या को हर परिरिथियों के अनूकूल बनाया। आप ने अपनी गुरूणी को जिस ढंग से वर्षों तक सेवा की है उस का उदाहरण मिलना अन्यत्र दुर्लभ है। संयममूर्ति साध्वी सुधा का जन्म १ अगस्त १६४३ को पट्टी के सेठ त्रिलोक चन्द्र जैन व माता कौशल्या देवी के यहां हुआ। भगवान महावीर के जैन धर्म के प्रति श्रद्धा आप को विरासत में मिली थी। आप को वचपन से ही संसार के काम भोग आसार लगने लगे थे आप ने घर में रह कर दसवीं की परीक्षा पास की। आत्मा में अंकुरित संयम के बीज आप को गुरू चरणों में ले आए। साध्वी श्री स्वर्णकांता जी महाराज का त्यागमय जीवन आप के संयम का उदाहरण बना।
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घर वालों से दीक्षा की आज्ञा मांगी। यह दीक्षा की आज्ञा इतनी सरलता से कहां मिलती है। परिजनों ने आप को संसार की भौतिकता का लालच दिया और साध्वी बनने से रोका पर आप ने भी अपनी मौसी का अनुकरण किया । आखिर घर वालों को अपनी प्रिय वेटी सुधा को दीक्षा की आज्ञा देनी पडी । आप ने वैराग्य से पहले घर वालों की विपरीत परिस्थितीयों को सहन किया।
१४ फरवरी १६६५ को वह मंगलमय बेला आ गई, जब आप की मनोकामना पूरी होने वाली थी। इस मंगलमय महोत्सव पर राष्ट्रसंत उपाध्याय श्री अमरमुनि जी महाराज के शिष्य पं० हेम चन्द जी महाराज व पं० श्री प्रेम चन्द विराजमान था । इन श्रमणों ने आप को दीक्षा पाठ पढाया। आप साध्वी श्री स्वर्णकांता जी की शिष्या घोषित हुईं। साध्वी बनते ही आप ने शास्त्रों का सूक्ष्म अध्ययन शुरू कर दिया। कई शास्त्र कंठस्थ किए। कई विद्वानों से व
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