Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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आस्था की ओर बढ़ते कदम
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में आता है। फतिहगढ़ साहिब गुरूद्वारे का नाम हैं जो दशमेश पिता के पुत्र फतहसिंह व जोरावर सिंह को समर्पित है । वैसे सरहिंद का इतिहास बहुत प्राचीन है । इस नगर का इतिहास संघोल के आस-पास के जैन व बौद्ध काल से संबंधित बहुत स्थल हैं। इस नगर का नाम मुस्लिम इतिहास में कई बार आया है । सरहिंद मुगल काल में एक प्रमुख सूबा था। बावर से पहले भी यह नगर बहुत आलीशान माना जाता था । गुरू गोबिन्द सिंह जब गुरूपुरी पधारे तो बंदा बहादुर को दक्षिण से पंजाब भेजा। उसने जितने मुस्लमानों के शहर थे सब को खण्डहरों में बदल दिया । इस का प्रमाण सुनाम, समाना, सुढोरा व सरहिंद है।
फिर सिक्ख राज आया, तब गुरूओं से संबंधित स्मारकों को संभालने का मामला सामने आया । यह क्षेत्र पटियाला राज्य में पड़ता था । जो सिक्ख नरेश था । पटियाला नरेश महाराजा भूपेन्द्र सिंह ने यहां के प्रसिद्ध गुरूद्वारा का निर्माण करवाया। आज भी सरहिंद में छोटी छोटी ईंटों के मकान मिलते हैं ।
सरहिन्द में हिन्दू मंदिर के साथ साथ जैन धर्म का एक महान तीर्थ चक्रेश्वरी देवी का प्रसिद्ध मंदिर व अमृत कुण्ड इन गुरूद्वारों के पास हैं। माता चक्रेश्वरी देवी भगवान ऋषभदेव की यक्षिणी देवी हैं। कहा जाता है जव महाराजा करम सिंह पटियाला बच्चों की शहादत का स्थान ढूंढ रहे थे तो माता चक्रेश्वरी देवी ने उन्हें वह स्वप्न में दर्शन देकर यह स्थान वताया जहां उनका संस्कार हुआ था । माता चक्रेश्वरी देवी का मंदिर पृथ्वीराज चौहान के समय बना । जव मध्यप्रदेश के कुछ खण्डेलवाल परिवार कांगडा तीर्थ की यात्रा करते इस स्थान पर पहुंचे। वह माता की प्रतिमा साथ लाए थे। उन्हें स्वपन में माता ने आदेश दिया "तुम यहां वस
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