Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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अस्था की ओर बढ़ते कदम
वर्ष वार व्योरा इतिहासक दृष्टि से लिखा था। जिस का वर्णन मैं पीछे कर चुका हूं।
मैं दिन के करीव १०-३० वजे दिल्ली पहुंच गया। टिकाना मुझे पता था । मेरे धर्म भ्राता श्री रविन्द्र जैन वडी उत्सुकता और श्रद्धा से मेरा इंतजार कर रहे थे। मैं उसकी श्रद्धा के ३० वर्ष से ज्यादा समय से जानता हूं। वह मुझे जब मिला, तो मुझे २७ फरवरी १६८७ का दिन बाद आ गया। जब इसी दिल्ली में मेरा इस ने एक दिन इंतजार किया था। यह समय राष्ट्रपति भवन में हमारी पुस्तक विमोचन का था । इसी कारण यह इंतजार कर रहा था । मुझे आज वही बेसवरी व इंतजार का ध्यान आ गया। यह इंतजार श्रद्धा का प्रतीक था । यह सुबह से खडा मेरा इंतजार कर रहा था। मैंने फिर स्थल में प्रवेश किया। स्टेज से संपर्क किया। मंत्री को मुख्य मेहमान को सचित्र महावीर जीवन चारित्र ग्रंथ भेंट करने का कार्यक्रम बताया।
मंच संचालक बहुत ही सज्जन थे । उन्होंने कहा आप का ग्रंथ इस शताब्दी का महत्वपूर्ण ग्रंथ है । हिन्दी जगत इस का सर्वत्र स्वागत करेगा। यह समारोह अंतराष्ट्रीय स्तर - पर हमारे साहित्य का मुल्यांकन का अच्छा अवसर था । बहुत सारे विद्वानों से मिलने का सौभाग्य मिला।
हम चेयर पर बैठ गए। समारोह शुरू हुआ। अंतराष्ट्रीय समारोह जैसा वातावरण था। पहले सदधित विषय पर लैक्चर हुआ । फिर लोगों ने वक्ता से प्रश्न पूछे । फिर ऐसा क्रम बना कि बीच बीच में जिन का सम्मान करना था उस का नाम बोला जाता । समारोह के मध्य में हमारा नाम घोषित किया गया।
यूनेस्को ने एक वडा सर्टीफिकेट हमारे नान से तैयार किया था। वह हम दोनों को अलग अलग भेंट किया
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