Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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== પામ્યા છે. ગોર લટકે રુદ્રમ सुधा जी महाराज की शिष्या साध्वी डा० स्मृति जी व श्री तिलकधर शास्त्री शामिल हुए। ......
सम्पादक मंडल हर सप्ताह अम्बाला में मिलता। पाट संशोधन का कार्य काफी कठिन था। आचार्य श्री ने यह कार्य वर्षों पहले सम्पन्न किया था। उस समय की हिन्दी वर्तमान हिन्दी में काफी अंतर था। कई स्थान पर तो मूल पाट प्रमादवश छुट गए थे। परन्तु आचार्य श्री ने अपनी प्रस्तावना में उपयोग में आये ग्रंथ व टीका का नाम लिखे था यह उपयोगी ग्रंथ हमें पूज्य श्री रत्न मुनि जी महाराज ने भण्डार से निकाल कर दिये। इन ग्रंथों से हम पाट संशोधन में वडी सहायता मिली। आचार्य श्री द्वारा लिखित मूल प्राकृत पाठ व छाया पूज्य आचार्य श्री घासी लाल जी महाराज से मिलती जुलती थी। आचार्य श्री घासी लाल जी महाराज उन महान आचार्यों में एक हुए हैं जिन्होंने ३२ आगमों का अनुवाद हिन्दी, गुजराती में साथ साथ किया है। साथ में संस्कृत भाषा में उन्होंने टीका रवयं लिखा है। यह ग्रंथ और अन्य प्रकाशित अनुवाद हमारे लिए बहुत उपयोगी रहे। २ वर्ष के लम्चे परिश्रम के बाद एक प्रारूप सामने आया। इस का प्रकाशन आत्म जैन प्रिंटिंग प्रैस लुधियाना में ६ वर्ष तक होता रहा। इस कार्य में आत्म रश्मि के संपादक प० तिलकधर शास्त्री जी का सहयोग हमें प्राप्त हुआ। वह १९७३ से हमारे परिचित सज्जन थे। जब वह २५००वां महावीर निर्वाण शताब्दी संयोजिका समिति पंजाव के सलाहकार नियुक्त हुए थे।
इस शास्त्र के लिए आर्शीवाद वचन स्व० आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी महारज ने रोनिला (हरियाणा) में लिखा। अम्बाला में आप के भव्य प्रवेश पर १०० से ज्यादा साधु साध्वी इकट्ठे हुए। हमारी गुरूणी ने उसी शाम को हुए
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