Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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-आस्था की ओर बढ़ते कदम संपादन करके प्रकाशित कराउं। मैंने सुना है कि आचार्य श्री के कुछ आगम अप्रकाशित हैं। आप पूज्य श्री रत्न मुनि जी महाराज के पास जा कर पता करो कि कौन कौन सा शास्त्र अप्रकाशित है। हम उसके प्रकाशन की व्यवस्था श्रावक संघ से करवा देंगे। उसके संपादन में मेरी सभी श्रमणीयां सहयोग देंगी। आप को मैं एक पत्र पूज्य रत्न मुनि जी महाराज के नाम देती हूं, आप लुधियाना जाओं, उनको हमारा संदेश दो, वह बहुत कृपालु मुनि हैं, वह हमारी इच्छा जरूर पूरी करेंगे।"
हम साध्वी श्री को इनकार कैसे कर सकते थे, पर शास्त्रों की भाषा प्राकृत संस्कृत होने के कारण हमें किसी सहायक की जरूरत थी। जैसे ही लुधियाना में पूज्य श्री रत्न मुनि जी को साध्वी श्री का पत्र दिया, उन्होंने हमारी प्रार्थना स्वीकार करके हमें ६ कापीयां, जो आचार्य श्री ने लिखवाई थी, हमें प्रदान कर दी। साध में उन्होंने कहा “आप साध्वी श्री से कहें कि किसी अच्छे विद्वान से भाषा का सम्पादन करवा के इसे प्रकाशित करवा दें।"
यह कापीयां लेकर साध्वी श्री के पास आए। साध्वी श्री उन कापीयों को पाकर बहुत प्रसन्न हुई। उन्होंने कहा “भैया ! घबराना नहीं। शास्त्र का सम्पादन हम करेंगे। एक बार आप आचार्य श्री की कापीयां पढ़ लो, फिर संपादन करना। बाद में प्रकाशन की व्यवस्था हो जाएगी। हमारे जितने ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं, सब से अधिक समय, इस ग्रंथ ने लिया। इस के दो कारण थे। एक आत्म जैन प्रिंटिंग प्रेस की अव्यवस्था थी व दूसरा पंजाब में व्याप्त आतंकवाद था। इस शास्त्र की प्रधान सम्पादिका हमारी गुरूणी जिन शासन प्रभाविका जैन ज्योति श्री स्वर्णकांता जी महाराज नहीं हुई। सम्पादन मण्डल में हम दोनों के अतिरक्त सरलात्मा साध्वी
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