Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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-= વાસ્થા હી વોર વહ ૦૮મ में अपनाया। इस बात की जानकारी जन साधारण को ना के वरावर है। वैसे भी इस विषय पर किसी ने काम नहीं किया था। हमें अपने लेखक जीवन में कई वार विश्वविद्यालयों के प्रोफैसरों को इस प्रश्न का अधूरा उत्तर देना पड़ता।
हम वहुत परेशान थे। इस विषय पर कोई लिखत सामग्री किसी भाषा में उपलब्ध नहीं थी। मैंने पुराणों के अंदर भगवान ऋषभदेव का वर्णन पढ़ा। वेद, पुराण महाभारत सभी ग्रंथों' की जन्म भूमि प्राचीन पंजाव में यह पंचनंद क्षेत्र है। वेद, पुराण, बोद्ध ग्रंथ, जैन ग्रंथ व मुस्लिम युग में जैन धर्म की स्थिति का मुझे पता चला। हम दोनों ने पंजाव के पुरातत्व स्थलों का भ्रमण किया। हमारे सामने कल्याण, जींद, नारनौल, कुरुक्षेत्र, पिंजौर, सुनाम, वठिण्डा, फरीदकोट, अरथलदोहल, अग्रोहा,, हिसार से उपलब्ध प्राचीन प्रमाण प्रतिमा के रूप में थे जो हमें आट सदी से गुप्तकाल तक ले जाते थे। सिन्धु घाटी की कई सीलें जैन धर्म के प्रमाण को ८००० ई.पू. तक ले जाती है।
कांगडा किला में मूल नायक भगवान ऋषभदेव की जगत् प्रसिद्ध प्रतिमा है। इस के पास वैद्यनाथ पपरोला में खंडित मूर्तियों के शिलालेखों का प्रमाण मिला। कुछ प्राइतिहासक व इतिहासक घटनाओं का पता पट्टावलीयों के माध्यम से चला। समाना की प्राचीन दादावाडी, मालेरकोटला, पटियाला, फरीदकोट, अमृतसर, लाहौर, स्यालकोट, गुजरांवाला, मुल्लतान, लुधियाना, फगवाड़ा में यतियों के डेरों से प्राचीन सामग्री ने इस ग्रंथ को संपूर्ण करने में सहायता की। यह पंजाव का जैन इतिहास खोजने के संदर्भ ग्रंथ बन गया। चारों सम्प्रदायों में कव किसका आगमन हुआ। परम्पराओं की बात चली, प्रभाविक साधु, साध्वीयों, लेखकों, स्वतंत्रता सेनानीयों का परिचय दिया गया। यह ग्रंथ हमारी ५ साल की कटोर श्रम
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