Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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आस्था की ओर बढ़ते कदम है कि तीर्थकर और अवतारावाद में भेद रेखा खींची जाए। इस के बाद हमने कुछ तीर्थकरों का जीवन चारित्र दिया है, जिनका इतिहास जैन परम्परा में विस्तार से मिलता है, ये तीर्थंकर हैं प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव, दूसरे तीर्थकर भगवान अजीतनाथ, १६ वें तीर्थंकर भगवती भल्लीनाथ, २२वें तीर्थकर भगवान नेमिनाथ व भगवान पार्श्वनाथ का चारित्र का संक्षिप्त में वर्णन किया गया है। शेष तीर्थकरों का वर्णन परिशिष्ट में दिया गया है।
खण्ड
२
यह खण्ड प्रभु महावीर के जीवन चारित्र से प्रारम्भ होता है। प्रथम अध्ययन में भगवान महावीर के पूर्व २८ भवों का वर्णन किया है। यह खण्ड दिलचस्प है। प्रभु महावीर को महावीर बनने से पहले कितनी बार नरक, स्वर्ग, पशु व मनुष्य योनि में जन्म लेकर कर्मफल भोगना पडा इसका वर्णन विस्तार से किया गया है। इस बात से सिद्ध होता है कि तीर्थंकर का जीव मानव जन्म की चरमोत्कर्ष अवस्था है ।
द्वितीय अध्ययन में भगवान महावीर के जन्म के समय समाजिक, राजनेतिक, धर्मिक परिस्थितियों का वर्णन किया गया है। भगवान महावीर का युग दास प्रथा का युग था । स्त्री व शुद्रों की अवस्था वहुत दयनीय थी। समाज में प्राचीन श्रमण परम्परा ( भगवान पार्श्वनाथ) कमजोर हो गई थी । वेद, ब्राह्मण, वलि प्रथा धर्म का अंग बन गए। इन्हीं परिस्थितियों का वर्णन हमारे द्वारा प्राचीन साहित्य के आधार पर किया गया है।
तृतीय अध्ययन में प्रभु महावीर के जन्म का वर्णन है । देवता द्वारा उनके द्वितीय जन्म कल्याणक पर ६४
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