Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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= ગામ્યા છે. ગોર વાલે હમ उल्लेख जिन ग्रंथों में आया है उनका वर्णन है। श्वेताम्बर दिगम्बर परम्परा के मान्यता भेद दिए गए हैं। साथ में इतिहास में जैन धर्म का वर्णन दूसरे ग्रंथों में किस प्रकार किया है उसका वर्णन है। जैन धर्म व वेदिक धर्म के अंतर का उल्लेख किया गया है। दक्षिण भारत में हुए जैन पर अत्याचारों का इतिहासक उल्लेख किया गया है। प्रस्तावना जैन धर्म का स्वतन्त्र सत्ता की ओर इंगित करती है। इस ग्रंथ के ५ खण्ड हैं।
खण्ड - १
इस खण्ड में ५ प्रकरण हैं। प्रथम अध्याय का नाम है "श्रमण संस्कृति की रूप रेखा। इस खण्ड में श्रमण संस्कृति की प्राचीनता दिखाई गई है। वैदिक व श्रमण संस्कृति का अंतर बताया गया है। इस बात को सिद्ध करने के लिए वैदिक द बोद्ध ग्रंथों को आधार बनाया गया है।
दूसरे पाट का नाम “जैन मान्यताओं के आरों का संक्षिप्त वर्णन' में जैन परम्परा अनुसार सृष्टि विकास की कहानी बताई गई है। उत्सर्पिणी व अवसर्पिणी कालों का वर्णन सरल भाषा में किया गया है, जो जैन धर्म की अपनी आधारभूत शास्त्रीय मान्यता है।
__ तीसरे पाट में 'जैन तीर्थकर परम्परा' का सरल भाषा में वर्णन किया गया है। इस में तीर्थकर गोत्र के कारण २० बोल (कारण), १४ स्वप्न, ३४ अतिशय, तीथंकर का वल, उनकी भाषा के ३५ गुण, तीर्थकर १८ दोषों का वर्णन है, जिन से तीर्थकर भगवान मुक्त होते हैं। इस में यह भी स्पष्ट किया गया है कि जैन तीर्थकर अवतार नहीं होते, जिस प्रकार वेदिक मान्यता में वर्णन मिलता है, ऐसी मान्यता का जैन धर्म में कोई स्थान नहीं है। हमारी यह कोशिश रही
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