Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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- आस्था की ओर बढ़ते कदम का फल था। सामग्री को संकलित किया गया। विखरे प्रमाणों को इकट्ठा करना जहां कठिन कार्य था, वहां यह इतिहासकारों के समक्ष हर समय उतरदायित्व भरा कार्य था। पर गुरूणी श्री स्वर्णकांता जी महाराज के आशीवाद से यह कार्य संपन्न हुआ। इस में दो ग्रंथ, पट्टावली पराग, पट्टावली संग्रह वहुत काम आए। आनंद जी कल्याण जी पेढ़ी से हमें मुगल वादशाहों के वह हुकमनामें मिले, जो जैन तीर्थ की रक्षा का शिकार रोकने हेतू जारी किए गए थे। इन में पंजाव में हिंसा वंद करने का उल्लेख था।
इस ग्रंथ के प्रारम्भ में जैन धर्म की प्राचीनता का वर्णन किया गया है। फिर जैन तीर्थकर और पंजाव का वर्णन जैन आगमों के आधार पर किया गया है। जैन .... राजाओं द्वारा पंजाब में धर्म प्रचार का वर्णन किया गया है। इन राजाओं में मोर्य, कुषाण, शक, वंश प्रमुख रहे हैं। भगवान ऋषभदेव के पुत्रों में वाहुबलि की राजधानी गंधार देश की तक्षशिला थी। यहां भरत-वाहुवलि संग्राम हुआ था। इसी धरती पर बाहुबलि ने राजपाट छोड़ कर दीक्षा ग्रहण की थी। यहां उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हुआ।
भगवान ऋषभदेव धर्म प्रचार हेतु यहां पधारे थे। उन्हें तपस्या के समय एक वर्ष तक भोजन नहीं मिला। हस्तिनापूर में उनके पौत्र श्रेयांस ने उन्हें आहार (भोजन) दिया। फिर शांति, कुंथु अरह प्रभु जैसे चक्रव्रती तीर्थकर इस धरती ने पैदा किए। रामायण में ऋषि बालमीकी का आश्रम पंजाव में है।
भगवान महावीर केवल ज्ञान के समय वर्तमान स्थानेश्वर (कुरुक्षेत्र) में पधारे थे। एक बार उन्होंने सिन्धु सोविर देश के राजा टुंदयन को दीक्षा देने उन्होंने लम्बा उग्र विहार किया था।
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