Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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-=વસ્થા હી ગોર લઇ જવા मन्दिर में जाकर शिवलिंग को नमस्कार करने को कहा। इस के उत्तर में राजा ने कहा "हम अनेकांत वादी साधु हैं हमें समागी देव को नमस्कार करना मना है। यह भगवत् ' आज्ञा के विपरीत है।"
राजा अपनी जिद पर अड़ा रहा। आचार्य श्री ने कहा "चलो मैं महाकाल के मन्दिर में जाकर प्रणाम करूंगा। यह शिव लिंग मेरा प्रणाम सहन न कर सकेगा। अगर कोई हानि हुई तो मेरी कोई जिम्मेवारी नहीं होगी।" ।
आचार्य श्री सिद्धसेन दिवाकर ने राजाज्ञा को स्वीकार करते हुए महाकाल मंदिर में पहुंचे। भगवान पार्श्वनाथ की स्तुती प्रारम्भ की। पांचवे श्लोक के उच्चारण के बाद शिवलिंग फट गया। भूमि से प्रभु पार्श्वनाथ की प्राचीन प्रतिमा प्रकट हुई। यह स्तोत्र भी भक्तामर स्तोत्र की तरह छंद अलंकार से अलंकृत है। यह स्तुती भी चारों सम्प्रदायों मं सर्वमान्य है। स्तोत्र अनेक मंत्र, यंत्र व तंत्र का भण्डार है। इस चमत्कारी स्तोत्र का अनुवाद भी मेरे नाम को समर्पित पत्रिका पुरुषोत्तम प्रज्ञा के अंक में प्रकाशित हुआ था। यह रचना मेरे जन्म दिन पर मेरे धर्मभ्राता की विशेष भेंट थी।
इस स्तोत्र के साथ हमने लोगस्स, नमौथ्युणं, उवसगंहर पाट का भी पंजावी अनुवाद प्रकाशित किया। यह सब मेरे जन्म दिन पर मेरे धर्म भ्राता रविन्द्र जैन ने मुझे समर्पित किया। मैं स्वयं भगवान पार्श्वनाथ का भक्त हूं। इस स्तोत्र का पंजावी अनुवाद करके हमने अपने इष्ट को अपनी. भाषा में श्रद्धांजली भेंट भक्ति की है।
यह दोनो जैन इतिहास की प्राचीन परम्परा से सबंधित हैं। इन के स्वाध्याय से पता चला है कि प्राचीन काल से जैन आचार्य को धर्म प्रचार में किस तरह के कठिन संकट सहने पड़े। स्वंय आचार्य सिद्धसेन दिवाकर पहले
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