Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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- आस्था की ओर बढ़ते कदम ना से विचिलत हो जाता है। जिस से उसकी माता धर्म में पुनः स्थिर करती है। इस में श्रावक की मातृ भक्ति का पता चलता है।
चर्तुथ अध्ययन में सुरादेव श्रावक द्वारा साधना लीन होने पर ३ पुत्रों की जघन्य हत्या करता है। फिर १६ रोग उत्पन्न होने की धमकी देता है। जिससे श्रावक घवरा जाता है। वह देव माया के चक्र में फंस कर घबरा जाता है जिसे उसकी पत्नी धर्म में स्थिर करती है।
पांचवें अध्ययन में चुलशतक श्रावक की श्रावक धर्म अराधना का वर्णन है। इस में भी एक रात्री एक मिथ्यात्वी देव आकर पुत्रों को मारने की धमकी देता है। फिर श्रावक पुत्रों के टुकडे काट कर लहु के छींटे उस पर फेंकता है। चुल्लशतक को दृढ कर देव उसका समस्त धन नाश करने की धमकी देता है। धन सम्पति की धमकी से श्रावक घबरा जाता है। वह उस देव को पकडने दौड़ता है। अंधेरे में आवाज लगाता है। सारा विवरण वह अपनी धर्म पत्नी से कहता है। पत्नी उसे धर्म पर स्थिर करती है। व्रत भंग के लिए प्रश्चित करने को कहती है। इस प्रकार इस श्रावक का वर्णन है।
छटे अध्ययन में कुण्डकोलिक श्रावक का वर्णन है। वह भी प्रभु महावीर का श्रावक धर्म का अराधक था। एक दिन दोपहर को वह अपनी अशोक वाटिका में ध्यान में लीन था। एक देव प्रकट होकर कहने लगा "हे कुण्डकोलिक ! मंखलि पुत्र गोशालक का धर्म बहुत अच्छा है। उस में उत्थान, बल, वीर्य पुरस्कार, पराक्रम के लिए कोई स्थान नहीं। सव कुछ नियति के अनुसार माना गया है। तुम भगवान महावीर के धर्म को छोड़ कर गोशालक का धर्म ग्रहण करो।"
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