Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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= ગાણ્યા શી વોર હટલે દમ इंटरनैशनल जैन कांग्रेस के अवसर पर दिल्ली के विज्ञान भवन में हुआ। इसका विमोचन स्वयं आचार्य श्री सुशील कुमार जी महाराज ने किया। आप ने स्वयं इस शास्त्र की प्रस्तावना लिखी। गच्छाचार प्रकीर्णक - ४
इस छोटे से ग्रंथ में आचार्यों ने श्रमण के लिए गच्छ में रहना अनिवार्य बताया है। गच्छ में रह कर भी साधक अपनी साधन निर्देष रूप से पूरी कर सकता है। इस में शिष्य को गलती हो जाने पर प्रायश्चित लेने के लिए गुरू के समक्ष प्रायश्चित करने का विधान है। अगर किसी कारण गुरू जिन मार्ग से विपरीत चले तो तो उसे शुद्ध मार्ग पर चलाना शिष्य का कर्तव्य है। अगर शिष्य ऐसा नहीं करता तो वह गुरू का शत्रु माना गया है। प्राकीर्ण में आचार्य को संघ का पिता माना गया है। वह स्वयं साध्वाचार का पालन करता है। संघ के हर साधु से आचार्य इस का पालन करवाता है। अगर वह ऐसा नहीं करता तो ऐसा आर्चा मोक्ष मार्ग का अधिकारी नहीं। धर्म संघ का शत्रु माना गया है। सारणा, वारणा, प्रेरणा करने वाला गच्छ होता है। इस में रह कर प्रत्येक साधु अपने पापों का प्रायश्चित द्वारा नष्ट करता है। जिसे आचार्य प्रदान करता है। इस प्रकार साधक में नए दोष पैदा नहीं होते। जिस गच्छ में गीर्ताथ मुनियों की संख्या ज्यादा हो उसे सुगच्छ कहा है।
इस ग्रंथ में श्रमण के अतिरिक्त श्रमणीयों की मर्यादा का भी कथन है। आचार्य ने श्रमणीयों को कहा है . जिस गच्छ में स्थविरा महासाध्वी के पश्चात युवा साध्वी
शयन करती है वह सुगच्छ है। ऐसा गच्छ ज्ञान दर्शन चारित्र ___ का आधारभूत श्रेष्ट गच्छ है। श्रमण श्रमणीयों को परस्पर
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