Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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- વારા શી વોર વઢd bદમાં सद्धालपुत्र ने उसकी सेवा भोजन, पानी संस्तारक से की। इस अध्ययन में सद्धालपुत्र के विस्तृत ज्ञान का पता चलता है। वह एक साथ प्रभु महावीर से चर्चा करता है दूसरी ओर मंखलि पुत्र गोशालक को प्रभु महावीर की स्तुती करने के लिए प्रेरित करता है। यह अध्ययन इतिहास की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
रवें अध्ययन में महाशतक श्रावक का वर्णन है। उसकी १६ पत्नीयों में रेवती प्रमुख थी। वह पापिन थी। वह महाशतक की धर्माराधना में रूकावट डालती। उस ने जहर से अपनी १६ सोतों को मार कर, उन की संपति पर अधिकार कर लिया। वह मदिरा व मांस में इतनी लोलुपी थी कि राजाज्ञा का उल्लंघन कर वह अपने मायके एक वछड़ा मंगवा कर खाती थी। इन सव के वावजूद महाशतक की साधना निरंतर चल रही थी।
लम्बी साधना के बाद वह महाशतक को अवधि ज्ञान हो गया। एक रात्रि जव वह धर्म अराधना कर रहा धा । शराव व मांस का सेवन कर खुले वालों सहित वह श्रावक महाशतक के पास आई। श्रावक को उस की गंदी हरकतों पर क्रोध आ गया। उस श्रावक ने रेवती को शीघ्र मरने और मरने के बाद नरक की भविष्यवाणी की। इस भविष्यवाणी को सुन रेवती भयभीत हुई। वह अव नशा भूल चुकी थी। यह भविष्यवाणी थी कि रेवती १६ रोगों से तड़प कर मरेगी। प्रभु महावीर को अपने श्रावक की भविष्यवाणी का पता चला तो उन्होंने महाशतक को ऐसा करने के लिए प्रायश्चित करने को कहा। प्रभु महावीर से महाशतक ने आज्ञा सहर्ष स्वीकार प्रायश्चित ग्रहण किया। प्रभु महावीर ने श्रावक को ऐसा सत्य बोलने से रोका, जो हिंसा का कारण हो।
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