Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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- વાસ્થા જી વોર હઠ ૮મ श्रजुता, मृदुता, भावसत्य, करण सत्य, योग सत्य, मन वचन व काया गुप्ति, समधारणा, वाक्य को सम्यक् ढंग लगाना, चक्षु, घाण, जीभ, स्पर्श के विषय, कोध, मान, माया, लोभ, प्रेम, द्वेष और मिथ्या दर्शन पर विजय पाने का फल वहुत सरल ढंग से बताया गया है। इस के अंतगर्त १४ गुणस्थान का वर्णन आ गया है। सभी प्रश्न जैन दर्शन की भूमिका के मुख्य प्रश्न हैं। इन के उत्तर प्रभु नहावीर ने सरल ढंग से दिए हैं।
३०वें अध्ययन का नाम तपोमार्ग गति है। इस में भिन्न भिन्न प्रकार के तपों का वर्णन है। तप के दो भेद किए
गए हैं : वाह्य तप, आंतरिक तप। दोनो तपों के भेदों क. __ वर्णन सविस्तार से किया गया है। इस अध्ययन में ३७ गाथाएं हैं।
३१वां अध्ययन चरणविधि है। इसका अर्थ विवेकपूर्ण किया कर्म। इस अध्ययन में संयन के प्रति विवेक और असंयम के प्रति अविवेक रखने के लिए उपदेश दिया गया है। इस अध्ययन में ३ दण्ड, ३ गौरव, ३ शल्य, ४ विकथा, ४ संज्ञा, ५ इन्द्रीयों के ६ विषय, भिक्षु की ४२ दोष प्रतिमाएं, ७ भय, ८ मद, ६ गुप्ति, १० प्रकार के धर्म, श्रावक की १६ प्रतिमाएं, १३ क्रिया स्थान, १४ भूत ग्राम जीव समूह, १०
परमधर्मिक देवों के भेदों का वर्णन, सूत्रकतांग के १६ ___ अध्ययनों के नाम, १७ तरह का संयम, १८ प्रकार का
अब्रह्मचर्य, २० असमाधि के कारण, २२ भिक्षा के दोष, सूत्रकृतांग के २७ अध्ययन, ५ महाव्रत की २५ भावनाएं, सत्यव्रत की ५ भावनाएं, ब्राह्मचर्य व्रत की ५ भावनाएं, . इन्द्रीयों के विषय, साधु के २७ गुण, पापश्रुत के २९ भेद, सिद्धों के ३१ भेद, और ३३ आशातनाओं का वर्णन है। यह
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