Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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- आस्था की ओर बढ़ते कदम समझ आया। इस समाज में विकास की अथाह संभावनाएं छुपी हैं। प्रचार के हर माध्यम को हम समाज अपनाते समय अपनी प्राचीन परम्परा को सुरक्षित रखे हुए हैं। इस का सत्वरूप उस समारोह वर्ष में देखने को मिला जब हमें हर स्थान पर गुरूओं ने सम्मानित किया। जैन धर्म में भगवान महावीर का संदेश है कि "मनुष्य वही शूरवीर हैं जो धर्म में शूरवीर है।" विनय धर्म का मूल है। विनयवान व्यक्ति हर स्थान पर प्रशंसा पाता है। प्रभु महावीर के यह सिद्धांत. हमारे जीवन के कीर्ति स्तंभ हैं।
इस प्राकरण में मैंने निर्वाण महोत्सव पर हुए कुछ महत्वपूर्ण कायों का सूक्ष्म व सरल विवेचन करने की चेष्टा की है। इस महोत्सवों की कड़ी में कई काम अंतराष्ट्रीय स्तर पर हुए। जिस में आचार्य श्री सुशील कुमार जी महाराज की विदेश यात्रा थी।
आचार्य तुलसी जी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसा और शांति के लिए कार्य करने वाले के लिए अणुव्रत अवार्ड की स्थापना हुई। इस अवार्ड से अहिंसा व अणुव्रतों के क्षेत्रों में कार्य करने वालों का जय तुलसी फाउंडेशन द्वारा सम्मान किया जाता है। इसी वर्ष भारतीय ज्ञान पीठ ने जैन प्रदर्शनी का निर्माण किया। आचार्य तुलसी जी, व स्थानकवासी परम्परा की कई संस्थाओं ने आगम प्रकाशन का कार्य शुरू किया। इन प्रकाशनों में जैन साहित्य विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित हाने लगा। श्री तारक जैन ग्रंथालय, भारतीय ज्ञान पीठ, सन्मति ज्ञान पीठ संस्थाओं ने जैन साहित्य को काफी बडी मात्रा में प्रकाशित किया। भारतीय ज्ञान पीठ ने जैन स्थापत्य व कला के नाम से ३ ग्रंथों का प्रकाशन हुआ। 'जिसका विमोचन तत्कालिन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने किया। जैन प्रतिमाओं, कलाकृतियों व हस्तलिखितों की
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