Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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- स्था की ओर बढ़ते कदम शास्त्रों का अध्ययन गुरूओ से विधिवत् रूप से अर्जित किया। आप की ज्ञान पिपासा इतनी तेज धी कि आप ने शास्त्र अध्ययन के लिए योग्य गुरूणी की तलाश शुरू की। आप देहली पधारे, वहां साध्वी मेलों के संघ में शामिल हो कर विद्याध्ययन प्रारम्भ किया। साध्वी श्री का सारा जीवन क्रान्तिकारी था। उस समय समाज दहेज प्रथा, स्त्रियों में अशिक्षा, जात-पात, छुआ-छूत, वाल विवाह, व युवा वर्ग विभिन्न कुव्यसनों में फंसा हुआ था। आप ने इन बुराईयों के विरूद्ध कमर कसी। स्थान-स्थान पर खुले प्रवचन कर जैन ध्वज को उंचा फहराया। आज पंजाब में जितना साध्वी परिवार दिखाई देता है। अधिकांश का संबंध अप की परम्परा से है। आप ने अपने समय के सभी परम्पराओं के महात्माओं से धर्म चर्चाएं की थी। शेरे-पंजाव लाला लाजपतराय आप के परम भक्त थे। जैन धर्म छोड़, आर्य समाज ग्रहण करने के पश्चात भी वह उनके प्रवचन सुनने आते थे। वह आप को धर्म माता मानते थे। आप के जमाने में नाभा राज्यों में ब्राहमणों ने जैन साधुओ का प्रतिबंध नाभा नरेश हीरा सिंह से लगवा दिया। आप ने इस आज्ञा को भंग कर देवी चौंक नाभा में भाषण दिया। राजा के मंत्री आए। उन्होंने कुछ प्रश्न किए। जिनका साध्वी श्री ने विद्वतापूर्ण लिखित उत्तर दे कर लोगों की जैन धर्म के प्रति फैली आशंका का निवारण किया। उस के बाद कभी भी नाभा स्टेट में जैन मुनियों का प्रवेश बंद नहीं हुआ। महाराजा हीरा सिंह स्वयं आप के दर्शन करने पधारे। आप ने राजा को धर्म का प्रतिवोध दिया।
__ महासाध्वी के उपदेशों से अनेकों भव्य आत्माओं ने अपना कल्याण किया। जिन में कई लडकियां तो बहुत प्रतिष्टित घराने से थीं। इन में रायकोट निवासी साध्वी श्री राजमति जी महाराज का नाम उल्लेखनीय है। इन्हीं साध्वी
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