Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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स्था की ओर बढ़ते कदम बौद्ध धर्म निकला है। स्वयं बौद्ध ग्रंथ भगवान पार्श्वनाथ के चर्तुयाम व निगष्ट नाएपुत महावीर के वर्णन से भरे पड़े हैं। हम बौद्ध धर्म और जैन धर्म का एक विभाग बनाने की बात करते हैं, जो श्रमण संस्कृति विभाग कहलाएगा।
डा० जोशी ने जो कहा वह सत्य था। पर जैन व वौद्ध धर्म एक नहीं हैं। वह एक दूसरे के काफी करीव हैं। इस दृष्टि से जैन धर्म पर अलग विभाग होना चाहिए। यह मेरा दृष्टिकोण धा परन्तु अभी इस विभाग के खुलने का समय नहीं आया था। कुछ ही दिनों बाद हमें डा० जोशी का पत्र मिला। जिस से जैन चेयर के बारे में कुछ बात करने के लिए लिखा गया था। हम दोनों गए। उन्होंने हमें कहा “अभी यू.जी.सी. ने ५०००० रूपए गांधीवाद अहिंसा व जैन धर्म के प्राप्त हुआ है इस पैसे से एक लैक्चरार रख लेते हैं।
हमें इस समाचार से अभूतपूर्व प्रसन्नता हुई। हमारे लिए जैन विभाग का खुलना चेवर से कम नहीं था। जल्द ही उन्होंने वैशाली प्राकृत जैन शोध संस्थान के डा० अतुलनाथ सिन्हां की नियुक्ति हो गई। अब इस विश्वविद्यालय में जैन धर्म की पढ़ाई अन्य धर्मो की तरह चालू हो गई और आज भी चालू है। यह स्वतंत्र विभाग न था ये गुरू गोविन्द सिंह तुलनात्मक अध्ययन विभाग का अंग था। पर इस कार्य की शुरूआत अच्छी रहीं। डा० सिन्हा प्राकृत भाषा के विद्वान हैं उन्होंने वाराणसी में भी शिक्षण कार्य किया है। वह जै धर्म व वौद्ध धर्म के प्रकाण्ड पंडित हैं।
उनके आने से भण्डारी श्री पदमचन्द्र जी महार।.... सरगर्म हो गए। हजारों रूपयों के ग्रंथ लाईब्रेरी के लिए पहुंचाने शुरू किये। जिस में सभी सम्प्रदायों के ग्रंथ थे। हमारी गुरुणी श्री स्वर्णकांता जी महाराज ने भी भारतीय ज्ञान पीट देहली का समस्त दिगम्बर साहित्य इस विभाग को
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