Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
View full book text
________________
आस्था की ओर बढ़ते कदम
था " चाहे वेद या अन्य ग्रंथों को गाकर पढ़ने की प्राचीन परम्परा है पर यह कविता के सारे नियम पूरे नहीं करते। कविता के अपने नियम हैं अपना विषय हे। इस दृष्टि से यह संपूर्ण प्रथम स्तुति है ।
डा० मेटे अपने विचारों पर दृढ थी । उन्हें 'हमारा लिखित पंजावी साहित्य भेंट किया गया। चाहे श्रीमती मेटे पंजावी नहीं जानती थीं फिर भी उन्होंने हमारे साहित्य की प्रशंसा करते हुए हसे मील का पत्थर बताया। यह साहित्य उन्होंने वर्लिन विश्वविद्यालय की लाईब्रेरी में रखने का निर्णय किया ।
फिर इस भाषण माला में श्री अगर चन्द नाहटा वीकानेर व श्रीमती शारदा गांधी का हिन्दु व जैन रामायण पर भाषण हुआ। श्री नाहटा का नाम भारतीय साहित्य, पुरात्तव, हस्तलिखित विषयों में जाना माना नाम है । वह कुछ समय मेरे घर मेहमान रहे। मारवाड़ी पहरावे में वह पधारे थे। कोई लिखित भाषण उनके हाथ में नहीं था। वह अपने भाषण से एक दिन पहले पधारे थे। रात्रि को वह मेरे धर्मभ्राता रविन्द्र जैन के यहां रूके। श्री नाहटा शुद्ध धार्मिक वृति के श्रावक थे । सारी रात्रि समायिक करते थे। सुबह उठ कर ही देव पूजा करने के बाद ही भोजन लेने का उनका नियम था। उनकी अपनी लाईब्रेरी एक यूनिवर्सिटी से बढ़कर है। उन्होंने हिन्दी के रासो साहित्य को साहित्य को अवगत कराया। सारे भारत में भ्रमण कर हस्तलिखित भण्डारों की सूची बनाई। वह इतिहास केसरी थे। सैंकडों ग्रंथ उन्होंने संपादित किए थे। वह मामूली पढ़े लिखे थे। परन्तु उन्होंने अपनी शिक्षा से सैंकडों विद्वानों का निर्माण किया। उन्होंने साधु साध्वीयों के शास्त्रों का अध्ययन कराया। अनेकों विदेशी विद्वान भी इनसे प्रभावित थे।
104