Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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यह
आस्था की ओर बढ़ते कदम किया था । यह कान्फ्रैंस में श्री वीरचन्द राघव गांधी सफल वक्ता थे। वह लम्बा समय अमेरिका में प्रवचन देते रहे। अमेरिका के स्थानीय लोग उनके भक्त बन गए। लोगों को पहली बार पता चला कि जैन धर्म एक स्वतन्त्र धर्म है, हिन्दू धर्म से निकला नहीं, ना ही वौद्ध धर्म की शाखा है । पर इस प्रचार का असर लम्बे समय तक रहा। पुनः वैरिस्टर चम्पतराय ने इंगलैंड में धर्म प्रचार किया । पर कोई भी साधु विदेश में नहीं गया। एक श्वेताम्वर मुनि श्री चित्रयानु ने १९७० में वाहन प्रयोग कर अमेरिका में पहुंचे । २ वर्ष तक मुनि भेष में रहने के पश्चात वह गृहस्थ कोष में आ गए। पुनः धर्म प्रचार में जुट गए। जो आज भी गुरूदेव नाम से जाने जाते हैं। हजारों की संख्या में अमेरिकन उन के श्रावक हैं। उन्होंने ३० से ज्यादा अंग्रेजी भाषा में ग्रंथ लिखे हैं ।
प्रथम सार्थक यत्न
आखिर समस्त जैन समाज का चिंतन इस मामले में प्रारम्भ हुआ। मुनि लोग धर्म प्रचार करना चाहते थे, पर वाहन के मामले में कोई सहमति नहीं थी । इस मामले में सर्वप्रथम क्रांतिकारी कदम राष्ट्रीय संत उपाध्याय श्री अमर मुनि जी महाराज ने उठाया। उन्होंने विश्व धर्म सम्मेलन के आचार्य सुशील कुमार जी महाराज को विदेशों में धर्म प्रचार की आज्ञा दी। इस यात्रा का इतना विरोध हुआ कि उन्हें अपनी परम्पराओं से अलग कर दिया गया। उन्होंने अर्हत जैन संघ की स्थापना की। अंतराष्ट्रीय महावीर जैन मिशन के माध्यम से एक पलेटफार्म बनाया। इस मिशन में समस्त विश्व के शाकाहारी व जैन धर्म के सभी सम्प्रदायों के श्रावकों को लिया ।
आचार्य श्री सुशील मुनि जी विश्व धर्म संस्था के
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