Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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आस्था की ओर बढ़ते कदम
कार्य में पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया ।
इसी मीटिंग में हमारी समिति का सदस्य वनना स्वीकार कर लिया। उन्होंने सदस्यता फार्म भरा। हमें कुछ संतुष्टि हुई। तब से राष्ट्रपति बनने तक हमारा ज्ञानी जी से अच्छे संबंध वन गए । राष्ट्रपति पद से हटने के बाद भी उन का स्नेह हमारे साथ बना रहा । ज्ञानी जैल सिंह महान देश भक्त थे। एक गांव के मामूली परिवार में जन्म लेकर वह भारत देश के राष्ट्रपति भवन तक पहुंचे। ज्ञानी जी हमेशा जन साधारण से जुड़े रहे । वह प्रजा मण्डल लहर की देन थे। देश के निर्माण के वारे में सतत् चिन्तित रहते ।
यही घटना थी जो समिति के निर्माण की प्रथम चरण था । हमें इस मुलाकात को फलीभूत होने में कम समय लगा । शायद एक सप्ताह का समय वीता होगा । हमें मुख्य मंत्री के प्रिंसिपल सचिव श्री एस. पी. वागला का बुलावा आ गया। हमें किसी भी दिन आकर समिति की रूप रेखा तय करने को कहा गया था । यह हमारे लिए परम हर्ष का विषय था। मेरे लिए सचिवालय जाने का प्रथम अनुभव था। हम दोनों बात में कोरे थे। मैंने धर्मभाता रविन्द्र जैन तो ज्यादा घवराते थे। पर अव गेंद हमारे पाले में आ चुकी थी । इसे संभालना था। जैन धर्म की सेवा का अवसर वडे पुण्य से मिला। समाज में हमारा स्थान वनने जा रहा था । हम कुछ मुनियों व साध्वियों से मिले जिन में प्रमुख मुनि शांति प्रिय जी महाराज थे जो चंडीगढ़ में विराजमान थे। उनका सहयोग हमें मिल रहा था । पर समिति निर्माण में आचार्य श्री विमल मुनि जी महाराज का प्रमुख सहयोग था । प्रिंसिपल सचिव से भेंट :
आखिर वह दिन आ गया जिस का इंतजार था । मैं कागजों में मामले में थोड़ा सुस्त हूं। पर प्रभु की कृपा
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