Book Title: Astha ki aur Badhte Kadam
Author(s): Purushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher: 26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
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- आस्था की ओर बढ़ते कदम शुरू से ही मैं स्वाध्यायशील था। परन्तु रविन्द्र जैन ने पहले मुझे पहले प्रेरक के रूप में प्रस्तुत किया। फिर संपादन का कार्य प्रदान किया। उसके बाद मैं भी सरस्वती की आराधना करने लगा। रविन्द्र जैन ने यह सब कार्य अपने बलबूते पर किये। वह व्यर्थ तर्क से दूर रहता है। उसे मेरा अनुशासन पसंद है।
श्री रविन्द्र जैन ने १६७२ में पंजाबी में लिखना शुरू किया। जो अब तक चालू है। महावीर की वाणी का प्रचार करने वाले हम प्रथम अनुवादक बने। इस सारे कार्य ___ का श्रेय व प्रेरिका जिन शासन प्रभाविका, साध्वी रत्ना जैन
ज्योति, साध्वी श्री स्वर्ण कांता व उनकी शिष्या सरलात्मा इ साध्वी श्री सुधा को जाता है। साधुओं श्रमण फूल चंद म०, रत्न मुनि जी म० ने हमें आर्शीवाद दिया। मेरी शादी :
__ रविन्द्र जैन की मुलाकात के बाद १६७३ में मेरी जादी संगरूर के जैन परिवार की लड़की नीलम जैनसे हुई वह धर्म कार्यों में मेरी सहायता करती है। मेरी पुत्री वन्दना, अनु व पुत्र अरिहंत भी मेरे धर्म कायों में वाधक नहीं बने। इस प्रकार घर में रहते हुए मुझे धर्म अराधना का अवसर मिला है। देहली यात्रा व जैन मुनियों से मिलना :
अपने धर्मभ्राता के मिलने के बाद जीवन में एक अध्यात्मिक सफर शुरू हुआ। जिस के माध्यम से हम जैन धर्म की प्रसिद्ध हस्तियों के सम्पर्क में आये। यह अवसर था १६७२ में देहली की एशिया - ७२ प्रदर्शनी देखने का अपने धर्मभ्राता रविन्द्र जैन के साथ मैं देहली गया। यह मेरा देहली का प्रथम सफर था। मेरे धर्मभ्राता का दूसरा सफर था। हम