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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
वर्णन जीवाजीवाभिगम सूत्रानुसार जान लेना ।
[१५] भगवन् ! वैताढ्य पर्वत का दक्षिणार्ध भरतकूट कहाँ है ? गौतम ! खण्डप्रपातकूट के पूर्व में तथा सिद्धायतनकूट के पश्चिम में है । उसका परिमाण आदि वर्णन सिद्धायतनकूट के बराबर है । दक्षिणार्ध भरतकूट के अति समतल, सुन्दर भूमिभाग में एक उत्तम प्रासाद है । वह एक कोस ऊँचा और आधा कोस चौड़ा है । अपने से निकलती प्रभामय किरणों से वह हँसता-सा प्रतीत होता है, बड़ा सुन्दर है । उस प्रासाद के ठीक बीच में एक विशाल मणिपीठिका है । वह पाँच सौ धनुष लम्बीचौड़ी तथा अढाई सौ धनुष मोटी है, सर्वरत्नमय है । उस मणिपीठिका के ऊपर एक सिंहासन है । भगवन् ! उसका नाम दक्षिणार्ध भरतकूट किस कारण पड़ा ? गौतम ! दक्षिणार्ध भरतकूट पर अत्यन्त ऋद्धिशाली, यावत् एक पल्योपमस्थितिक देव रहता है । उसके चार हजार सामानिक देव, अपने परिवार से परिवृत चार अग्रमहिषियाँ, तीन परिषद्, सात सेनाएं, सात सेनापति तथा सोलह हजार आत्मरक्षक देव हैं । दक्षिणार्ध भरतकूट की दक्षिणार्धा नामक राजधानी है, जहाँ वह अपने इस देव-परिवार का तथा बहुत से अन्य देवों और देवियों का आधिपत्य करता हुआ सुखपूर्वक निवास करता है, विहार करता है-सुख भोगता है । भगवन् ! दक्षिणार्ध भरतकूट देव की दक्षिणार्धा राजधानी कहाँ है ? गौतम ! मन्दर पर्वत के दक्षिण में तिरछे असंख्यात द्वीप और समुद्र लाँधकर जाने पर अन्य जम्बूद्वीप है । वहाँ दक्षिण दिशा में १२०० योजन नीचे जाने पर है । राजधानी का वर्णन विजयदेव की राजधानी सदृश जानना । इसी प्रकार कुटो को जानना । ये क्रमशः पूर्व से पश्चिम की ओर हैं ।
[१६] वैताढ्य पर्वत के मध्य में तीन कूट स्वर्णमय हैं, बाकी के सभी पर्वतकूट रत्नमय हैं ।
[१७] जिस नाम के कूट है, उसी नाम के देव होते है-प्रत्येक देव की एक-एक पल्योपम की स्थिति होती है ।
[१८] मणिभद्रकूट, वैताढ्यकूट एवं पूर्णभद्रकूट-ये तीन कूट स्वर्णमय हैं तथा बाकी के छह कूट रत्नमय हैं । दो पर कृत्यमालक तथा नृत्यमालक नामक दो विसदृश नामों वाले देव रहते हैं । बाकी के छह कूटों पर कूटसदृश नाम के देव रहते हैं । मन्दर पर्वत के दक्षिण में तिरछे असंख्येय द्वीप समुद्रों को लांघते हुए अन्य जम्बूद्वीप में १२००० योजन नीचे जाने पर उनकी राजधानियां हैं । उनका वर्णन विजया राजधानी जैसा समझ लेना ।
[१९] भगवन् ! वैताढ्य पर्वत को 'वैताढ्य पर्वत' क्यों कहते हैं ? गौतम ! वैताढ्य पर्वत भरत क्षेत्र को दक्षिणार्ध भरत तथा उत्तरार्ध भरत नामक दो भागों में विभक्त करता हुआ स्थित है । उस पर वैताढ्यगिरिकुमार नामक परम ऋद्धिशाली, एक पल्योपमस्थितिक देव निवास करता है । इन कारणों से वह वैताढ्य पर्वत कहा जाता है । इसके अतिरिक्त वैताढ्य पर्वत नाम शाश्वत है । यह नाम कभी नहीं था, ऐसा नहीं है, यह कभी नहीं है, ऐसा भी नहीं है और यह कभी नहीं होगा, ऐसा भी नहीं है । यह था, यह है, यह होगा, यह ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित एवं नित्य है ।
[२०] भगवन् ! जम्बूद्वीप में उत्तरार्ध भरत नामक क्षेत्र कहाँ है ? गौतम ! चुल्लहिमवंत वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, वैताढ्य पर्वत के उत्तर में, पूर्व-लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिम