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जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-४/१३९
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शीतोदा महानदी अपने उद्गम-स्थान में पचास योजन चौड़ी है । एक योजन गहरी है । प्रमाण में क्रमशः बढ़ती-बढ़ती जब समुद्र में मिलती है, तब वह ५०० योजन चौड़ी हो जाती है । वह अपने दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाओं तथा दो वनखण्डों द्वारा परिवृत है । भगवन् ! निषध वर्षधर पर्वत के कितने कूट हैं ? गौतम ! नौ, -सिद्धायतनकूट, निषधकूट, हरिवर्षकूट, पूर्वविदेहकूट, हरिकूट, धृतिकूट, शीतोदाकूट, अपरविदेहकूट तथा रुचककूट । शेष वर्णन चुल्लहिमवंत पर्वत समान है । भगवन् ! वह निषध वर्षधर पर्वत क्यों कहा जाता है ? गौतम ! निषध वर्षधर पर्वत के बहुत से कूट निषध के आकार के सदृश हैं । उस पर एक पल्योपम आयुष्ययुक्त निषध देव निवास करता है । इसलिए वह निषध वर्षधर पर्वत कहा जाता है ।
[१४०] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत् महाविदेह क्षेत्र कहाँ है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत् है । वह पूर्व-पश्चिम में लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण में चौड़ा है, पलंग के आकार के समान संस्थित है । वह दो ओर से लवणसमुद्र का स्पर्श करता है । उसकी चौड़ाई ३३६८४-४/१९ योजन है । उसकी बाहा पूर्व-पश्चिम ३३७६७-७/१९ योजन लम्बी है । उसकी जीवा पूर्व-पश्चिम लम्बी है । वह दो ओर से लवणसमुद्र का स्पर्श करती है । एक लाख योजन लम्बी है । उसका धनुपृष्ठ उत्तर-दक्षिण दोनों ओर परिधि की दष्टि से कुछ अधिक १५८११३-१६/१९ योजन है । महाविदेह क्षेत्र के चार भाग हैं-पूर्व विदेह, पश्चिम विदेह, देवकुरु तथा उत्तरकुरु ।
- भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र का आकार, भाव, प्रत्यवतार किस प्रकार का है ? गौतम ! उसका भूमिभाग बहुत समतल एवं रमणीय है । वह नानाविध पंचरंगे रत्नों से, तृणों से सुशोभित है । महाविदेह क्षेत्र में मनुष्यों का आकार, भाव, प्रत्यवतार किस प्रकार का है ? गौतम ! वहाँ के मनुष्य छह प्रकार के संहनन, छह प्रकार के संस्थानवाले होते हैं । पाँच सौ धनुष ऊँचे होते हैं । आयुष्य जघन्य अन्तमुहर्त तथा उत्कृष्ट एक पूर्व कोटि होता है । अपना आयुष्य पूर्ण कर उनमें से कतिपय नरकगामी होते हैं, यावत् कतिपय सिद्ध, होते हैं, समग्र दुःखों का अन्त करते हैं । वह महाविदेह क्षेत्र क्यों कहा जाता है ? गौतम ! भरतक्षेत्र, ऐवतक्षेत्र, आदि की अपेक्षा महाविदेहक्षेत्र-अति विस्तीर्ण, विपुलतर, महत्तर तथा वृहत् प्रमाणयुक्त है । विशाल देहयुक्त मनुष्य उसमें निवास करते हैं । परम ऋद्धिशाली, एक पल्योपम आयुष्यवाला महाविदेह नामक देव उसमें निवास करता है । इस कारण वह महाविदेह क्षेत्र कहा जाता है । इसके अतिरिक्त महाविदेह नाम शाश्वत है ।
[१४१] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में गन्धमादन नामक वक्षस्कारपर्वत कहाँ है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, मन्दरपर्वत-वायव्य कोण में, गन्धिलावती विजय के पूर्व में तथा उत्तरकुरु के पश्चिम में महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत् है । वह उत्तर-दक्षिण लम्बा
और पूर्व-पश्चिम चौड़ा है । उसकी लम्बाई ३०२०९-६/१९ योजन है । वह नीलवान् वर्षधर पर्वत के पास ४०० योजन ऊँचा है, ४०० कोश जमीन में गहरा है, ५०० योजन चौड़ा है । उसके अनन्तर क्रमशः उसकी ऊँचाई तथा गहराई बढ़ती जाती है, चौड़ाई घटती जाती है । यों वह मन्दर पर्वत के पास ५०० योजन ऊँचा, ५०० कोश गहरा हो जाता है ।