Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 212
________________ तन्दुलवैचारिक-६३ २११ हमने कईं शील, व्रत, गुणविरमण, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास, अपनाकर स्थिर रहेंगे । हे आयुष्मान् ! तब ऐसा चिन्तन क्यों नहीं करता कि निश्चय से यह जीवन कई बाधा से युक्त है । उसमें कईं वात, पित्त, श्लेष्म, सन्निपात आदि तरह-तरह के रोगांतक जीवन को छूती है ? [६४] हे आयुष्मान् ! पूर्वकाल में युगलिक, अरिहंत चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव चारण और विद्याधर आदि मानव रोग रहित होने से लाखों साल तक जीवन जीते थे । वो काफी I सौम्य, सुन्दर रूपवाले, उत्तम भोग- भुगतनेवाला, उत्तम लक्षणवाले, सर्वांग सुन्दर शरीरवाले थे। उनके हाथ और पाँव के तालवे लाल कमल पत्र जैसे और कोमल थे । अंगुलीय भी कोमल थी । पर्वत, नगर, मगरमच्छ, सागर एवम् चक्र आदि उत्तम और मंगल चिन्हो से युक्त थे । पाँव कछुए की तरह - सुप्रतिष्ठित और सुस्थित, जाँघ हीरनी और कुरुविन्द नाम के तृण की तरह वृत्ताकार गोढ़ण डिब्बे और उसके ढक्कन की सन्धि जैसे, साँथल हाथी की सोंढ़ की जैसी, गति उत्तम मदोन्मत हाथी जैसी विक्रम और विलास युक्त, गुह्य प्रदेश उत्तम जात के श्रेष्ठ घोड़े जैसा, कमर शेर की कमर से भी ज्याद गोल, शरीर का मध्य हिस्सा समेटी हुई तीन- पाई, मूसल, दर्पण और शुद्ध किए गए उत्तम सोने के बने हुए खड्ग की मूढ़ और वज्र जैसे वलयाकार, नाभि गंगा के आवर्त और प्रदक्षिणावर्त्त, तरंग समूह जैसी, सूरज की किरणों से फैली हुई कमल जैसी गम्भीर और गूढ़, रोमराजि रमणीय, सुन्दर स्वाभाविक पतली, काली, स्निग्ध, प्रशस्त, लावण्ययुक्त अति कोमल, मृदु, कुक्षि, मत्स्य और पंछी की तरह उन्नत, उदर कमल समान विस्तीर्ण स्निग्ध और झुके हुए पीठवाला, अल्परोम युक्त ऐसे देह को पहले के मानव धारण करते है । जिसकी हड्डियां माँस युक्त नजर नहीं आती, वह सोने जैसी निर्मल, सुन्दर रचनावाले, रोग आदि उपसर्ग रहित और प्रशस्त बत्तीस लक्षण से युक्त होते है । वक्षस्थल सोने की शिला जैसे उज्ज्वल, प्रशस्त, समतल, पुष्ट, विशाल और श्रीवत्स चिह्नवाले, भूजा नगर के दरवाजे की अर्गला के समान गोल, बाहु भुजंगेश्वर के विपुल शरीर और अपनी स्थान से नीकलनेवाले अर्गले की जैसी लटकी हुई, सन्धि मुग जोड जैसे, माँसगूढ़, हष्ट-पुष्ट-संस्थित-सुगठित सुबद्ध- नाड़ी से कसे हुए-ठोस, सीधे, गोल, सुश्लिष्ट, सुन्दर और दृढ, हाथ हथेलीवाले, पुष्ट कोमल - मांसल सुन्दर बने हुए - प्रशस्त लक्षणवाले, अंगुली पुष्टछिद्ररहित - कोमल और उत्तम, नाखून ताम्र जैसे रंग के पतले स्वच्छ - कान्तिवाले सुन्दर और स्निग्ध, हाथ की रेखाएँ चन्द्रमाँ सूर्य-शंख-चक्र और स्वस्तिक आदि शुभ लक्षणवाली और सुविरचित, खंभे उत्तम भेंस, सुवर, शेर, वाघ, साँढ, हाथी के खंभे जैसे विपुल - परिपूर्ण-उन्नत और मृदु, गला चार आंगल सुपरिमित और शंख जैसी उत्तम, दाढ़ी-मूँछ अवस्थित और साफ, डोढ़ी पुष्ट, मांसल, सुन्दर और वाघ जैसी विस्तीर्ण होठ संशुद्ध, मृगा और बिम्ब के फल जैसे लाल रंग के, दन्त पंक्ति चन्द्रमा जैसी निर्मल शंख-गाय के दुध के फीण, कुन्दपुष्प, जलकण और मृणालनाल की तरह श्वेत, दाँत, अखंड सुडोल, अविरल अति स्निग्ध और सुन्दर, एक समान, तलवे और जिह्वा का तल अग्नि मे तपे हुए स्वच्छ सोने जैसा, स्वर सारस पंछी जैसा मधुर, नवीन मेघ की दहाड़ जैसा गम्भीर और क्रोंच पंछी के आवाज जैसी - दुन्दुभी युक्त, नाक

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