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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
पार्श्वभाग बताए है । एक बाँया दुसरा दाँया । जिसमें दांया पार्श्वभाग है वो सुख परिणामवाला होता है । जो बांया पार्श्वभाग है वो दुःख परिणामवाला होता है । हे आयुष्मान् ! इस शरीर में १६० जोड़ है । १०७ मर्मस्थान है, एक दुसरे से जुडी ३०० हड्डियाँ है, ९०० स्नायु, ७०० शिरा, ५०० माँसपेशी, ९ धमनी, दाढ़ी-मूंछ के रोम के सिवा ९९ लाख रोमकूप, दाढ़ीमूंछ सहित साढ़े तीन करोड़ रोमकूप होते है । हे आयुष्मान् ! इस शरीर में १६० शिरा नाभि से नीकलकर मस्तिष्क की ओर जाती है । उसे रसहरणी कहते है । उर्ध्वगमन करती हुई यह शिरा चक्षु, श्रोत्र, घ्राण और जिह्वा को क्रिया शीलता देती है । और उसके उपघात से चक्षु, नेत्र, घ्राण और जिह्वा की क्रियाशीलता नष्ट होती है । हे आयुष्मान् ! इस शरीर में १६० शिरा नाभि से नीकलकर नीचे पाँव के तलवे तक पहुँचती है । उससे जंघा को क्रियाशीलता प्राप्त होती है । यह शिरा के उपघात से मस्तकपीड़ा, आधाशीशी, मस्तकशूल और आँख का अंधापन आता है ।
हे आयुष्मान् ! इस शरीर में १६० शिरा नाभि से नीकलकर तिर्थी हाथ के तलवे तक पहुँचती है | उससे बाहु को क्रियाशीलता, मिलती है । और उसके उपघात से बगल में दर्द, पृष्ठ दर्द, कुक्षिपिडा और कुक्षिशूल होता है । हे आयुष्मान् ! १६० शिरा नाभिसे नीकलकर नीचे की ओर जाकर गुंदा को मिलती है । और उसके निरुपघात से मल-मूत्र, वायु उचित मात्रा में होते है । और उपघात से मल, मूत्र, वायु का निरोध होने से मानव क्षुब्ध होता है
और पंडु नाम की बिमारी होती है । हे आयुष्मान् ! कफ धारक २५ शिरा पित्तधारक २५ शिरा और वीर्य धारक १० शिरा होती है । पुरुष को ७०० शिरा, स्त्री को ६७० शिरा और नपुंसक को ६८० शिरा होती है । हे आयुष्मान् ! यह मानव शरीर में लहू का वजन एक आढ़क, वसा का आधा आढ़क, मस्तुलिंग का एक प्रस्थ, मूत्र का एक आढ़क, पुरीस का एक प्रस्थ पित्त का एक कुड़व, कफ का एक कुड़व, शुक्र का आधा कुड़व परिमाण होता है । उसमें जो दोषयुक्त होता है उसमें वो परिमाण अल्प होता है । पुरुष के शरीर में पाँच
और स्त्री के शरीर में छ कोठे होते है । पुरुष को नौ स्त्रोत और स्त्री को ११ स्त्रोत होते है पुरुष को ५०० पेशि, स्त्री को ४७० पेशी और नपुंसक को ४८० पेशी होती है।
[१०३] यदि शायद शरीर के भीतर का माँस परिवर्तन करके बाहर कर दिया जाए तो उस अशुचि को देखकर माँ भी धृणा करेगी
[१०४] मनुष्य का शरीर माँस, शुक्र, हड्डियाँ से अपवित्र है । लेकिन यह वस्त्र, गन्ध और माला से आच्छादित होने से शोभायमान है ।
[१०५] यह शरीर, खोपरी, मज्जा, माँस, हड्डियाँ, मस्तुलिंग, लहू, वालुंडक, चर्मकोश, नाक का मैल और विष्ठा का घर है । यह खोपरी, नेत्र, कान, होठ, ललाट, तलवा आदि अमनोज्ञ मल युक्त है । होठ का घेराव अति लार से चीकना, मुँह पसीनावाला, दाँत मल से मलिन, देखने में बिभत्स है । हाँथ-अंगुली, अंगूठे, नाखून के सन्धि से जुड़े हुए है । यह कईं तरल-स्त्राव का घर है । यह शरीर, खंभे की नस, कईं शिरा और काफी सन्धि से बँधा हुआ है । शरीर में फूटे घड़े जैसा ललाट, सूखे पेड़ की कोटर जैसा पेट, बालवाला अशोभनीय