Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 220
________________ तन्दुलवैचारिक- १३५ [१३५] मृत शरीर पर मक्खी बण-बण करती है । सड़े हुए माँस में से सुल-सुल आवाझ आती है । उसमें उत्पन्न हुए कृमि समूह मिस - मिस आवाज करते है । आंत में से शिव-थिव होता है । इस तरह यह काफी बिभत्स लगता है । २१९ [१३६] प्रकट पसलीवाला भयानक, सूखे जोरों से युक्त चेतनारहित शरीर की अवस्था जान लो । [१३७] नौ द्वार से अशुचि को नीकालनेवाले झरते हुए कच्चे घड़े की तरह यह शरीर प्रति निर्वेद भाव धारण कर लो । [१३८ ] दो हाथ, दो पाँव और मस्तक, धड़ के साथ जुड़े हुए है । वो मलिन मल का कोष्ठागार है । इस विष्ठा को तुम क्यों उठाकर फिरते हो ? [१३९] इस रूपवाले शरीर को राजपथ पर घूमते देखकर खुश हो रहे हो और परगन्ध से सुगंधित को तुम्हारी सुगन्ध मानते हैं । [१४०] गुलाब, चंपा, चमेली, अगर, चन्दन और तरूष्क की बदबू को अपनी खुश्बु मानकर खुश होते हो । [१४१] तुम्हारा मुँह मुखवास से, अंग-प्रत्यंग अगर से, केश स्नान आदि के समय में लगे हुए खुश्बुदार द्रव्य से खुश्बुदार है । तो इसमें तुम्हारी अपनी खुश्बु क्या है ? [१४२] हे पुरुष ! आँख, कान, नाक का मैल और श्लेष्म, अशुचि और मूत्र यही तो तुम्हारी अपनी गन्ध है । [१४३] काम, राग और मोह समान तरह-तरह की रस्सी से बँधे हजारों श्रेष्ठ कवि द्वारा इन स्त्रीयों की तारीफ में काफी कुछ कहा गया । वस्तुतः उनका स्वरूप इस प्रकार है । स्त्री स्वभाव से कुटील, प्रियवचन की लत्ता, प्रेम करने में पहाड़ की नदी की तरह कुटील, हजार अपराध की स्वामिनी, शोक उत्पन्न करवानेवाली, बाल का विनाश करनेवाली, मर्द के लिए वधस्थान, लज्जा को नष्ट करनेवाली, अविनयकी राशि, पापखंड़ का घर, शत्रुता की खान, शोक का घर, मर्यादा तोड देनेवाली, राग का घर, दुराचारी का निवास स्थान, संमोहन की माता, ज्ञान को नष्ट करनेवाली, बह्मचर्य को नष्ट करनेवाली, धर्म में विघ्नसमान, साधु की शत्रु, आचार संपन्न के लिए कलंक समान, रज का विश्राम गृह, मोक्षमार्ग में विघ्नभूत, दरिद्रता का आवास - कोपायमान हो तब झहरीले साँप जैसी, काम से वश होने पर मदोन्मत हाथी जैसी, दुष्ट हृदया होने से वाघण जैसी, कालिमां वाले दिल की होने से तृण आच्छादित कूए समान, जादूगर की तरह सेंकड़ो उपचार से आबद्ध करनेवाली, दुर्ग्राह्य सद्भाव होने के बावजूद आदर्श की प्रतिमा, शील को जलाने में वनखंड की अग्नि जैसी, अस्थिर चित्त होने से पर्वत मार्ग की तरह अनवस्थित, अन्तरंग व्रण की तरह कुटील, हृदय काले सर्प की तरह अविश्वासनीय । छल छद्म युक्त होने से प्रलय जैसी, संध्या की लालीमा की तरह पलभर का प्रेम करनेवाली, सागर की लहर की तरह चपल स्वभाववाली, मछली की तरह दुष्परिवर्तनीय, चंचलता में बन्दर की तरह, मौत की तरह कुछ बाकी न रखनेवाली, काल की तरह घातकी, वरुण की तरह कामपाश समान हाथवाली, पानी की तरह निम्न अनुगामिनी, कृपण की तरह

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