Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 218
________________ तन्दुलवैचारिक-१०५ २१७ कुक्षिप्रदेश, हड्डियाँ और शिरा के समूह से युक्त उसमें सर्वत्र और चारों ओर रोमकूप में से स्वभाव से ही अपवित्र और घोर बदबू युक्त पसीना नीकल रहा है । उसमें कलेजा, पित्त, हृदय, फेफड़े, प्लीहा, फुप्फुस, उदर आदि गुप्त माँसपिंड़ और मलस्त्रावक नौ छिद्र है । उसमें धक्धक् आवाज करनेवाला हृदय है । वो बदबू युक्त पित्त, कफ, मूत्र और औषधि का निवासस्थान है । गुह्य प्रदेश गुंठण, जंघा और पाँव के जोड़ो से जुड़े, माँस गन्ध से युक्त अपवित्र और नश्वर है । इस तरह सोचते और उसका बीभत्स रूप देखकर यह जानना चाहिए कि यह शरीर अध्रुव, अनित्य, अशाश्वत, सड़न-गलन और विनाशधर्मी, एवं पहले या बाद में अवश्य नष्ट होनेवाला है । सभी मानव का देह ऐसा ही है । [१०६] माता की कुक्षि में शुक्र और शोणित में उत्पन्न उसी अपवित्र रस को पीकर नौ मास गर्भ मे रहता है । [१०७] योनिमुख से बाहर नीकला, स्तनपान से वृद्धि पाकर, स्वभाव से ही अशुचि और मल युक्त ऐसे इस शरीर को किस तरह धोना मुमकीन है ? [१०८] अरे ! अशुचि में उत्पन्न हुए और जहाँ से वो मानव बाहर नीकला है । कामक्रीड़ा की आसक्ति से ही उसी अशुचि योनि में रमण करता है ।। [१०९] फिर अशुचि से युक्त स्त्री के कटिभाग को हजारों कवि द्वारा अश्रान्त भाव से बयान क्यों किया जाता है ? वो इस तरह स्वार्थ वश मूढ़ बनते है । [११०] वो बेचारे राग की वजह से यह कटिभाग अपवित्र मल की थै है यह नहीं जानते । इसीलिए ही उसे विकसित नीलकमल के समूह समान मानकर ऊसका वर्णन करते है। [१११] ज्यादा कितना कहा जाए ? प्रचुर मेद युक्त, परम अपवित्र विष्ठा की राशि और धृणा योग्य शरीर में मोह नहीं करना चाहिए । [११२] सेंकड़ो कृमि समूह युक्त, अपवित्र मल से व्याप्त, अशुद्ध, अशाश्वत, साररहित, दुर्गन्धयुक्त, पसीना और मल से मलिन इस शरीर से तुम निर्वेद पाओ । [११३] यह शरीर दाँत, कान, नाक का मैल, मुख की प्रचुर लार से युक्त है । ऐसे बिभत्स और धृणित शरीर के प्रति राग कैसा ? । [११४] सड़न, गलन, विनाश, विध्वंसन दुःखक और मरणधर्मी, सड़े हुए लकड़े समान इस शरीर की अभिलाषा कौन करेगा ? [११५] यह शरीर कौए, कुत्ते, कीडी, मकोडे, मत्स्य और मुर्दाघर में रहते गिधड आदि का भोज्य और व्याधि से ग्रस्त है । उस शरीर से कौन राग करेगा ? [११६] अपवत्रि विष्ठा से पूरित, माँस और हड्डी का घर, मलस्त्रावि, रज-वीर्य से उत्पन्न नौ छिद्रयुक्त अशाश्वत जानना । [११७] तिलकयुक्त, विशेष स्क्त होठवाली लड़की को देखते हो । [११८] बाहरी रूप को देखते हो लेकिन भीतर के दुर्गंधयुक्त मल को नहीं देखते । [११९] मोह से ग्रसित होकर नाच उठते हो और ललाट के अपवित्र रस को (चुंबन

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